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:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर मंत्री वंश और उज्जयंतगिरितीर्थस्थ श्री वस्तुपाल - तेजपाल - टूक :: [ १६७
तीनों मंदिरों के मंदिरों के समस्त बाहरी तीनों मन्दिरों की निर्माण
शैली और उन में कलाकाम
भीतर उतना कलाकाम नहीं है, जितना उनके बाहरी भाग पर है। शिखर, गुम्बज और भागों पर अनेक देवियों, इन्द्रों, पशुओं जैसे सिंहों, हस्तियों आदि के आकार तथा भित्तियों पर चारों ओर नृत्य-दृश्य के अनेक प्रकार बनाये गये हैं । ये सर्व लगभग आठ सौ वर्ष पर्यन्त से भी अधिक वर्षा, श्रातप, भूकम्प और ऐसे ही प्रकृति के अन्य छोटे-बड़े प्रकोप सहन कर भी अपने उसी रूप में आज भी नवीन से प्रतीत होते हैं ।
चौमुखा आदिनाथमुख्यमंदिर के बाहें पक्ष पर जुड़ा हुआ चौमुखा श्री स्तंभनकपुरावतार नामक श्री पार्श्वनाथदेव का मंदिर बना है । उसमें अवश्य उत्तम प्रकार का शिल्पकाम देखने को मिलता है ।
इन तीनों मंदिरों के निर्माण में जो शिल्पकौशल देखने को मिलता है, वह अन्यत्र दिखाई नहीं देता । किसी ऊंची टेकरी पर से देखने पर इन तीनों मंदिरों का देखाव एक उडते हुए कपोत के आकार का है। चौमुखा श्री महावीरचैत्यालय और चौमुखा पार्श्वनाथचैत्यालय मानों आदिनाथचैत्यालय रूपी कपोत के खुले हुये पंख हैं । आदिनाथचैत्यालय अपने पक्ष पर बने दोनों मंदिरों से आगे की ओर चौंच-सा कुछ और पीछे की ओर पूछ-सा अधिक लंबा निकला हुआ है । कपोत की चौड़ी पीठ की भांति आदिनाथचैत्यालय का गुम्बज और शिखर भी चौड़े और चपटे हैं।
तीनों मंदिरों की स्तंभमाला भी समानान्तर और एक-से स्तंभों की है। स्तंभों की और मण्डपों की संख्या न्यूनाधिक है ।
आदिनाथचैत्यालय में ६४, पार्श्वनाथचैत्यालय में ४२ और महावीरचैत्यालय में ३८ स्तंभ हैं ।
आदिनाथचैत्यालय में दो बड़े विशाल मण्डप और इन दोनों विशाल मण्डपों के मध्य में एक मध्यम आकार का मण्डप तथा इसके पूर्व और पश्चिम में कुलिकाओं के आगे बने हुये दो छोटे २ मण्डप और आगे के बड़े मण्डप के पूर्व, पश्चिम में अन्तरद्वारों के आगे एक २ छोटा मण्डप - इस प्रकार दो बड़े मण्डप, एक मध्यम और चार छोटे मण्डप हैं। शेष दोनों मंदिरों में द्विमंजिले स्तंभों पर एक एक अति विशाल मण्डप बना है ।
श्री महावीरचैत्यालय के बाहर के तीनों द्वारों, श्री आदिनाथचैत्यालय के दोनों द्वारों और श्री पार्श्वनाथचैत्यालय के तीनों द्वारों के आगे एक एक चौकी इस प्रकार इन तीनों मंदिरों के आठ द्वारों के आगे आठ चौकियाँ बनी हैं। महं० जिसघर द्वारा ३०० द्रामों का दान
वि० सं० १३३६ ज्येष्ठ शु० ८ बुधवार को श्रमवाण (सर्वाण) वासी प्रा० ज्ञा० महं० जिसधर के पुत्र महं० पुनसिंह ने भार्या गुरु श्री के श्रेयार्थ श्री उज्जयंतमहातीर्थ की पूजार्थ नित्य ३०५० पुष्प चढ़ाने के निमित्त ३००) द्राम अर्पित किये थे ।