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________________ खण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर मंत्री-वंश और अबु दाचत्तस्थ श्री लूणसिह वसतिकारूप का शिल्पसौंदर्य :: [ १६१ में अलग २ वृक्षों को दबा कर खड़े हैं। इन सर्व दृश्यों के पश्चात् उनके राजारूप का दृश्य है । वे सिंहासन पर बैठे हैं, उनके ऊपर छत्र लटक रहा है, पार्श्व में अङ्गरक्षक और अन्य राजकर्मचारी खड़े हैं। तत्पश्चात् हस्तिशाला और अश्वशालायें बनी हैं । अन्त में राजप्रासाद है, जिसके भीतर और द्वारों में लोग खड़े हैं । ४. श्रीकृष्ण - गोकुल के दृश्य वाले मण्डप के और रंगमण्डप के बीच के खण्ड के मध्यवर्त्ती मण्डप के नीचे पूर्व और पश्चिम की (१४) पंक्तियों के मध्य में एक २ जिनमूर्त्ति खुदी है । ५. गूढ़मण्डप की दोनों ओर की चौकियों के आगे (१५) के स्तंभों में आठ-आठ भगवान् की मूर्तियाँ खुदी हैं । ६. पश्चिमाभिमुख सिंहद्वार के भीतर तृतीय मण्डप के भ्रमती की ओर के (१६) आगे के दोनों स्तंभों में आठ २ भगवान् की छोटी-छोटी और सुन्दर मूर्त्तियाँ खुदी हैं । ये दोनों स्तंभ दीर्घकाय तथा सीधी धारी वाले और सिंहद्वार के भीतर तृतीय सुन्दर शिल्पकाम से मंडित हैं । इसी (१७) मण्डप के ठेट नीचे की पंक्ति में उत्तर और मण्डप का दृश्य दक्षिण में अम्बिकादेवी की अति सुन्दर और मनोहर मूर्त्तियाँ खुदी हैं । देवकुलिकायें और उनके मण्डपों में, द्वारचतुष्कों में, स्तम्भों में खुदे हुये कलात्मक चित्रों का परिचय ( सिंहद्वार के उत्तरपक्ष से दक्षिणपक्ष को ) लूणसिंहवसति का सिंहद्वार पश्चिमाभिमुख है, अतः देवकुलिकाओं तथा उनके द्वारस्तम्भों, मण्डपों, भित्तियों का शिल्पकला की दृष्टि से वर्णन लिखना पश्चिमाभिमुख सिंहद्वार के उत्तरपक्ष पर बनी देवकुलिकाओं से प्रारंभ किया जाना ही अधिक संगत है । १. प्रथम देवकुलिका के प्रथम मण्डप में (१८) अंबिकादेवी की सुन्दर और बड़ी मूर्ति खुदी है। देवी- मूर्ति दो झाड़ों के बीच में है और झाड़ों के इधर उधर एक श्रावक और श्राविका हाथ जोड़ कर खड़े हैं २. देवकुलिका सं० ६ के द्वितीय मण्डप में (१६) द्वारिकानगरी, गिरनारतीर्थ और भगवान् नेमनाथप्रतिमा के सहित समवशरण की रचना है । मण्डप के एक ओर कोण में समुद्र दिखाया गया है। इस समुद्र में से खाड़ी निकाल कर उसमें जलचर क्रीड़ा करते दिखाये हैं | खाड़ी में जहाज हैं। खाड़ी के तट पर आये हुये जंगल का दृश्य भी अंकित है । इस जंगल में एक मंदिर दिखाया गया है। मंदिर में प्रतिमा विराजमान है । यह दृश्य द्वारिकानगरी का है । मण्डप के दूसरे कोण में गिरनारतीर्थ का दृश्य अंकित है । कुछ मंदिर भगवान् की कायोत्सर्गिक प्रतिमा है। मंदिर के चारों ओर वृक्ष आ गये हैं। चामरादि पूजा और अर्चन की सामग्री लेकर मंदिर की ओर जा रहे हैं। आगे २ छः साधु चल रहे हैं। उनके बनाये गये हैं। मंदिर के बाहर श्रावकगण कलश, फूलमाला,
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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