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________________ १६०] :: प्राग्वाट-इतिहास : [ द्वितीय की सुन्दर रचना है। मण्डप इतना सुन्दर है कि देखने वाला देखते २ ही थक जाता है और ग्रीवा दुखने लग जाती है। यह बात तो केवल दर्शक की है ; शिल्पकलामर्मज्ञ और अन्वेषक-दर्शक अपने को भूल ही जाता है और अति तृप्त होकर जब जाग्रत होता है तो अनुभव करता है कि उसकी गर्दन में दर्द होने लग गया है । (६) मण्डप में सोलह देवियाँ भिन्न २ वाहनों और शस्त्रों से युक्त स्तम्भों के ऊपर बनी हुई हैं । इनकी रचना और बनावट अत्यन्त ही रमणीय है। उपरोक्त सोलह (विद्या) देवियों के नीचे की पंक्ति में तृजिनचौवीशी (७) बनी है। तथा नीचे की ओर एक वलयरेखा (८) पर साठ प्राचार्य महाराजों की मूर्तियाँ खुदी हैं । २. रंगमण्डप के पूर्व पक्ष के उत्तर (EA) और दक्षिण (63) दोनों कोणों में इन्द्रों की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हैं तथा नीचे नवचौकिया में जाने के लिये बनी सीढ़ियों के दोनों पक्षों के रंगमण्डप की (२८-२६) तरफ के भागों के आलयों में एक २ इन्द्र की मूर्ति बनी है । ३. रंगमण्डप के दक्षिण-पक्ष के दो स्तम्भों में अलग २ (१०) जिनचौवीशी बनी हैं। ४. रंगमण्डप के बाहर भ्रमती में नैऋत्य कोण में बने मण्डप में ६८ अड़सठ प्रकार का नृत्य-दृश्य है, जो एक अध्ययन की वस्तु है। १. रंगमण्डप के पश्चिम भाग की भ्रमती में तीन लम्बे २ मण्डप हैं। जिनमें उत्तम शिल्पकाम किया हुआ है। आजू-बाजू के मण्डपों की पश्चिम दिशा की पंक्तियों के मध्य में (११) एक-एक अम्बाजी की सुन्दर मूर्ति भ्रमती और उसके दृश्य बनी है और नृत्य का देखाव भी है, जो अति सुन्दर है। २. रंगमण्डप के दक्षिण पक्ष में पश्चिम से पूर्व को जाने वाली भ्रमती के प्रथम मण्डप में अति सुन्दर शिल्पकाम है और (१२) श्रीकृष्ण के जन्म का दृश्य है। देवकी पलंग पर काराग्रह-महालय में सो रही है । इस महालय के तीन गढ़ और प्रत्येक गढ़ में एक-एक दिशा में एक-एक द्वार है, इस प्रकार इस महालय के बारह द्वार हैं और ये बारह ही द्वार बंध हैं। श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका है । माता देवकी के पार्श्व में कृष्ण सो रहे हैं । एक स्त्री पंखा झल रही है। एक स्त्री पास में बैठी है। समस्त द्वारों के इधर-उधर तीनों गढ़ों में हाथियों, देवियों, सैनिकों और गायकों की आकृतियाँ सुन्दर ढंग से खुदी हुई हैं।। ३. इसके पास के मध्य के मण्डप में (१३) श्रीकृष्ण और उनकी गोकुल में की गई कुछ बाल-लीलायें, जैसे गौ-चारण आदि तथा उनके फिर राजा होने के दृश्य हैं । मण्डप के नीचे की पंक्तियों में दो ओर आमने-सामने श्रीकृष्ण और गोकुल का भाव है। उसमें पूर्व की मोर की पंक्ति के एक कोण में एक वृक्ष है। इस वृक्ष की एक डाली में झूला बंधा है और कृष्ण उसमें सो रहे हैं। वृक्ष के नीचे दो पुरुष बैठे हैं। इनके पार्श्व में एक गौपाल अपने दोनों कन्धों पर आड़ी लकड़ी अपने दोनों हाथों से पकड़ कर खड़ा है । पास में एक कक्ष की टांड पर घी, दूध अथवा दही भरने की पांच मटकियाँ रक्खी हैं । .. इस दृश्य के पार्श्व में एक अन्य गोपाल सुन्दर लकड़ी के सहारे खड़ा है । उसके पार्श्व में पशु चर रहे हैं । तत्पश्चाद दो स्त्रियों के छाछ बनाने का दृश्य है । उसके पास में यशोदा कृष्ण को अपने गोद में लिये बैठी है । तत्पश्चात् दो झाड़ों में एक झूला बंधा है और श्रीकृष्ण उसमें झूल रहे हैं तथा बाहर निकलने का प्रयत्न कर रहे हैं। उस झूले के पार्श्व में एक हस्ति पर श्रीकृष्ण द्वारा मुष्ठि-प्रहार करने का दृश्य है । तत्पश्चात् श्रीकृष्ण अपनी दोनों भुजाओं
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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