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खण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचलस्य श्री लूणसिंहवसतिकाख्य का शिल्पसौंदर्य :: [ १८४
आधार है। ये स्तंभ ऐसे प्रतीत होते हैं, जैसे एक ही चतुष्क अथवा समान आधार पर बहुमंजिली राजप्रासादमालायें अपना गगनचुम्बी उन्नत साधारण-मस्तक लिये सुदृढ़ खड़ी हों । दोनों ओर के गवाक्षों की भी सम्पूर्ण बनावट इसी शैली से की गई हैं। द्वारस्तंभों और गवाक्षों के मध्य में दोनों ओर जो अन्तर-भाग हैं, उनमें शिल्पकार की टांकी ने प्रस्तर के भीतर ही भीतर घुस २ कर जो अपनी नौक की कुशलता दिखाई है, वह उस स्थान और उन अंगों को देख कर ही समझी जा सकती है। गवाक्षों के शिखर भी सशिखरप्रासाद-शैली के बने हैं। प्रत्येक मंजिल को सुस्पष्ट करने में टांकी ने अपनी अद्भुत नौक की तीक्ष्णता को प्रयोग में लाने के लिये सिद्धहस्त शिल्पकार के हाथों में सौंपा है—ऐसा देखते ही तुरन्त कहा जा सकता है । दोनों गवाक्ष अपनी २ ओर की भित्ति को पूरे भर कर बने हैं। उनके शिखर छत पर्यन्त और उनके आधार नीचे तक पहुंचे हैं। देखने में प्रत्येक गवाक्ष एक छोटे मंदिर-सा लगता है । तेजपाल का कलाप्रेम इन्हीं गवाक्षों में अपना अंतिम रूप प्रकटा सका है ऐसा कहा जा सकता है । सूक्ष्मतम और अद्भुत शिल्पकाम के ये दोनों गवाक्ष उत्कृष्ट नमूने हैं। नवचौकिया के अन्य स्तंभों की रचना भी अधिकतर प्रासाद-शैली से ही प्रभावित है । नवचौकिया में कुल १२ बारह स्तंभ हैं, जिनमें उत्तर, दक्षिण दोनों ओर के किनारों के सुन्दर और बीच के अति सुन्दर हैं अर्थात् ६ सुन्दर और ६ अति सुन्दर हैं। प्रत्येक अतिसुन्दर-स्तंभ कला की साक्षात प्रतिमा ही हैं।
१. इसके दक्षिण पक्ष (३) पर दूसरे और तीसरे स्तम्भ के बीच में एक जिनतृचौवीशीपट्ट है । उसके ऊपर के छज्जे पर लक्ष्मीदेवी की एक सुन्दर मूर्ति बनी है । जिनतचोवीशीपट्ट अर्थात् बहत्तर जिनमूर्तियाँ वाला पट्ट। इस
पट्ट में विगत, आगत और अनागत तीनों कालों के चौवीश जिनेश्वरों के तीन वर्ग नवचौकिया में कलादृश्य
५ दिखाये गये हैं। पट्ट का सौन्दर्य आकर्षक एवं इतना प्रभावक है कि भक्तगणों का मस्तक तो उसके दर्शन पर स्वभावतः झुकता ही है, नास्तिक भी अपने को भूल कर हाथ जोड़ ही लेता है।
२. दक्षिण-पक्ष (४) के दूसरे मण्डप में जो उपरोक्त जिनचौवीशीपट्ट के समक्ष है पुष्पपंक्ति का देखाव है और उसके ऊपर की वलयरेखा पर जिनचौवीशी खुदी है।
३. दक्षिण पक्ष के तृतीयमण्डप (५) के चारों कोणों में हस्तिसहित लक्ष्मीदेवी की मूर्तियाँ खुदी हैं और उनके मध्य २ में ६ जिनप्रतिमायें करके एक पूर्ण जिनचौवीशी खुदी है।
नवचौकिया के मण्डपों में काचलाकृतियाँ इतनी कौशलपूर्ण बनी हैं कि वे कागज की बनी हो ऐसा भास होता है । काचलाकृतियों के नौकों और कहीं बीच-बीच में, कहीं २ वलय रेखाओं पर जिनमूर्तियाँ खुदी हैं- इनमें गर्भित अद्भुत शिल्पकौशल सचमुच शिल्पकार की सिद्ध टांकी का कृत्य है।
१.रंगमण्डप बारह स्तम्भों पर बना है। इन बारह स्तंभों में उत्तर दिशा के तीन और दक्षिण दिशा का एक स्तम ये चारों स्तंभ सुन्दर और शेष पाठ स्तंभ अति सुन्दर हैं । स्तंभों की रचना अधिकतर नवचौकिया और गूढमण्डप के
___ द्वार के स्तम्भों-सी है। इन पर अति सुन्दर तोरणों की रचना है । पूर्वपक्ष पर मध्य में तोरण रङ्गमण्डप
नहीं है । रंगमण्डप बारह वलयों से बना है । केन्द्र में झूमर है । इसमें काचलाकृतियों दोनों गवाक्षों की रचना के कारण के विषय में मिथ्या श्रति चल पड़ी है कि ये दोनों देवराणी और ज्येष्ठाणी के बनाये हुए हैं अथवा उनके श्रेयार्थ बनवाये गये हैं। परन्तु बात यह नहीं है। दंडनायक तेजपाल ने अपनी द्वितीया स्त्री सुहड़ादेवी की स्मृति में और उसके श्रेयार्थ ये दोनों पालय बनवाये हैं ।