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________________ :: प्राग्वाट-इतिहास:: [ द्वितीय । लूणसिंहवसति के परिकोष्ट में दक्षिण दिशा में भी एक द्वार है। आवागमन इसी द्वार से प्रमुखतः होता है । यह द्वार द्विमंजला है। इसके ऊपर चतुष्द्वारा है । विमलवसति से निकलकर उत्तर की ओर मुड़ते हैं और कुछ . चरण चल कर इसमें प्रविष्ट होते हैं। द्वार के दाही ओर एक चतुष्क पर एक लम्बा दक्षिण द्वार और कात्तिस्तम स्तंभ खडा हैं, जिसका शिर-भाग अपूर्ण है। शिर का भाग या तो खण्डित हो गया या खण्डित कर दिया गया है । इस स्तंभ को कीर्तिस्तंभ कहते हैं। __ ये दोनों आकार में विशाल हैं; परन्तु बनावट में एक दम सादे हैं । जैसा पूर्व लिखा जा चुका है कि वि० सं० १२८७ फाल्गुण कृ० ३ रविवार को नागेन्द्रगच्छीय श्रीमद् विजयसेनसरि के करकमलों से कसौटी के प्रस्तर की __ चनी हुई श्यामवर्ण की श्री नेमिनाथ भगवान् की विशाल प्रतिमा को इसमें प्रतिष्ठित ७५ किया था । मलगंभारे के द्वार के बाहर चौकी है और उसमें दोनों तरफ दो श्रालय है। मूलगंभारे के ऊपर बना हुआ शिखर छोटा और बैठा हुआ है। गूढमण्डप के ऊपर का गुम्बज भी छोटा और बैठा हुआ ही है । गूढमण्डप आठ बड़े स्तम्भों से बना है । स्तंभ सादे हैं, परन्तु दीर्घकाय हैं । गूढ़मण्डप के उत्तर और दक्षिण में दो द्वार हैं और दोनों द्वारों के आगे एक-एक सुन्दर चौकी बनी है । प्रत्येक चौकी के चारों स्तम्भ और मण्डप की रचना अति सुन्दर और कलापूर्ण है। गूढमण्डप का मुखद्वार पश्चिमाभिमुख है । इसके आगे नवचौकिया की रचना है। लूणसिंहवसति के अत्यन्त कलापूर्ण अंगों में नवचौकिया का स्थान भी प्रमुख है। गूढ़मण्डप का द्वार, द्वारशाखायें, द्वार के बाहर दोनों ओर बने दोनों आलय, आलयों के ऊपर के भाग, छत और स्तंभ तथा नवचौकिया के मण्डप इत्यादि एक से एक बढ़ कर कला को धारण किये हुये हैं। नवचौकिया - जिनका वर्णन करना कलम की कमजोरी को प्रकट करना है। देख कर ही उनका आनंद लिया जा सकता है। फिर भी यथाशक्ति वर्णन देने का प्रयत्न किया है। गूढमण्डप के द्वार के द्वारशाखों और स्तंभों में ऊपर से नीचे तक आड़ी और सीधी गहरी धारायें खोदी गई हैं। प्रत्येक स्तंभ को खण्डों में एक २ गहरी आड़ी धार खोद कर फिर विभाजित किया गया है। स्तंभ के ऊपर के भाग में शिखर और नीचे समूर्ति इस समय निम्नवत् प्रतिमा विराजमान हैं। २-मूलगंभारे में:१-सपरिकर मू० ना० श्री नेमनाथ भगवान् की श्यामवर्ण प्रतिमा । २-सपरिकर पंचतीर्थी । ३, ४ परिकररहित दो मूर्तियां । गृढमण्डप में:१-भगवान् पार्श्वनाथ की कायोत्सर्गिक प्रतिमाये २। २-सपरिकर प्रतिमायें ३। ३-अन्य प्रतिमायें १६ । ४-चौवीशीपट्ट से अलग हुये जिनबिंब२। ५-धातु-पंचतीर्थी २। ६-सुन्दर मूर्तिपट्ट१ । इस पट्टके मध्य में राजीमति की सुन्दर खड़ी प्रतिमा है। नीचे दोनों तरफ दो सखियों की मूर्तियाँ बनी हैं। ऊपर भगवान् की मूर्ति है। यह वि० सं०१५१५ का प्रतिष्ठित हैं। ७-यक्षप्रतिमा। उपरोक्त प्रतिमायें और पट्ट भिन्न २ श्रावकों के द्वारा विनिर्मित हैं और भित्र २ संवतों में प्रतिष्ठित किये हुये है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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