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वण्ड ] :: मंत्रो भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर मंत्री वंश और अबु दाचलस्थ श्री लूणसिंहवसतिकाख्य का शिल्पसौंदर्य :: [ १८७
अनन्य शिल्पकलावतार अर्बुदाचलस्थ श्री लूणसिंहवसति काख्य श्री नेमिनाथ - जिनालय
मूलगंभारा, गूढ़मण्डप, नवचौकिया, भ्रमती और सिंहद्वार आदि का शिल्पकाम
मदालस्थलवाड़ाग्राम में जहाँ ऊपर पांच जैन मंदिरों के होने के विषय में कहा गया है, विमलवसति अगर उनमें एक है तो लूणसिंहवसति एक है। दोनों के ऊपर एक ही लेखक लिखने बैठे तो निसन्देह है कि वह विमलवसति और उलझन में पड़ जायगा कि सौन्दर्य और शिल्प की उत्तम रचना की दृष्टियों से वह लूणसिंहवसति किसको प्रधानता दे । यह ही समस्या मेरे भी सामने है। दोनों में मूल अन्तर - विमल - वसति दो सौ वर्ष प्राचीन है और दूसरा प्रमुख अन्तर विमलवसति अगर जीवन लूणसिंहवसति कला का सौन्दर्य है। एक में प्रमुखता जीवन-चित्रों की है और दूसरे कला की । कला जीवन में माधुर्य और सरसता लाती है। जिस जीवन में कला नहीं, वह जीवन ही शुष्क है । और जो कला जीवन के लिये नहीं वह कला भी निरर्थक है । यह बात उपरोक्त दोनों वसतियों से दृष्टिगत होती है । विमलवसति में अनेक जीवन-संबंधी चित्र हैं और वे कलापूर्ण विनिर्मित हैं और लुणवसति में अनेक कलासंबंधी रचनायें हैं और वे सीधी जीवन से संबंधित हैं ।
का लेखा है तो
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संक्षेप में विमलवसति जीवन - चित्र और लूणसिंहवसति कलामूर्त्ति है । अपने २ स्थान में दोनों अद्वितीय हैं । लूणसिंहवसति सर्वाङ्गसुन्दर मन्दिर है। मूलगंभारा, चौकी, गूढ़मण्डप और गूढ़मण्डप के दोनों पक्षों पर चौकियाँ, आगे नवचौकिया और उसमें दोनों ओर गूढ़मण्डप की भित्ति में आलय, फिर सभामण्डप, भ्रमती, देवकुलिकायें और उनके आगे स्तंभवतीशाला, सिंहद्वार और उसके आगे चौकी - इस प्रकार मंदिरों में जितने अंग होने चाहिये, वे सर्व अंग यहाँ विद्यमान हैं । मन्दिर के पीछे सुन्दर हस्तिशाला भी बनी हुई है ।
परिकोट और सिंहद्वार
विमलवसति से ऊपर उत्तर की ओर लगती हुई एक टेकरी आ गई है। उस टेकरी के पूर्वी ढाल के नीचे श्री लूणसिंहवसति बनी हुई है । यह भी विशाल बावनजिनालय है । वस्तुपाल तेजपाल का इतिहास लिखते समय इसके निर्माण, प्रतिष्ठा आदि के विषय में पूर्णतया लिखा जा चुका है, परन्तु यह एक कलामन्दिर है, जिसकी समता रखने वाला अन्य कलामन्दिर जगत में नहीं है । अतः यह श्रावश्यक हो जाता है कि शिल्पकार शोभनदेव की टांकी और उसके मस्तिष्क का यह जादू जो आज भी अपने पूर्ण सौन्दर्य और मनोहार्य से विद्यमान हैं और जो अनन्य भव्यता, मनोमुग्धकारिता, अलौकिकता लिये हुये शिल्पकला की साक्षात् प्रतिमा है अनिवार्यतः कलादृष्टि से वर्णनीय है ।
सिंहवसति क्षेत्र की दृष्टि से विशाल है, परन्तु ऊंचाई मध्यम लिये हुए है। बाहर से इसका देखाव बिलकुल सादा है, यह मंत्री - भ्राताओं की सादगी और सरल जीवन का उदाहरण है। इसका सिंहद्वार पश्चिमाभिमुख है और उसके आगे चौकी है। सिंहद्वार की रचना भी सादी ही है।