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________________ प्राग्वाट-इतिहास: [द्वितीय सखा र वि० सं० १२६३ चै० ० ८ शुक्रवार को उसमें आदिनाथजिनेश्वरबिंब को प्रतिष्ठित करवाया। वंश-वृक्षः3. चाचिग [चाचिणी] राघवदेव [साभीय] उदयपाल [अहिवदेवी] महं० आसदेव [सुहागदेवी] ० भोजदेव [समल] मह० आणंद [लुका] दंडनायक तेजपाल की अन्तिम यात्रा वि० सं० १२६७ सातवीं यात्रा-दंडनायक तेजपाल ने वि० सं० १२६७ वैशाख कृ. १४ गुरुवार को की और नवचौकिया में दो गवाक्षों में अपनी द्वितीय स्त्री सुहड़ादेवी के श्रेयार्थ जिनप्रतिमायें प्रतिष्ठित करवाई। दंडनायक तेजपाल ने इस प्रकार मुख्यतः आठ यात्रायें की हैं । एक यात्रा हस्तिशाला में अपने पूर्वज और . प्राताओं के स्मरणार्थ हस्ति-स्थापना के निमित्त की थी। यह यात्रा कब की इसका संवत् प्राप्त नहीं है । परन्तु इतना अवश्य लिखा जा सकता है कि हस्तिशाला का निर्माण संभवतः वि० सं० १२६३-४ तक पूर्ण हो चुका था। *००० ले० सं०भा०२ले० ३३२ पृ०१३५
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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