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खण्ड ] :: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और अबु दाचलतीर्थार्थ उनकी यात्रायें तथा श्र० कुमरा :: | १६१
श्रे० ० कुमरा वि० सं० १२६३
विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में प्राग्बाटज्ञातीय श्रे० सांतणाग और जसणाग नामक दो भ्राता चन्द्रावती में हो गये हैं | श्रे०जसणाग के साहिय, सांवत और वीरा नाम के तीन पुत्र थे । साहिय के दो पुत्र थे, बकुमार और गागउ | सांवत के भी पूनदेव और वाला नामक दो पुत्र थे और वीरा के भी देवकुमार और ब्रह्मदेव नामक दो ही पुत्र थे । श्रे० देवकुमार के दो पुत्र वरदेव और पाल्हण तथा चार पुत्रियाँ देल्ही, आल्ही, ललतू और संतोषकुमारी हुई । ब्रह्मदेव के एक पुत्र बोहड़ि नामक और एक पुत्री तेजू नामा हुई ।
श्रे० वरदेव के कुमरा नामक प्रसिद्ध पुत्र हुआ और श्रे० पाल्हण के जला और सोमा नामक दो पुत्र और सीता नामा पुत्री हुई.
श्रे० कुमरा के दो पुत्र, आंबड़ और पूनड़ तथा दो पुत्रियाँ नीमलदेवी और रूपलदेवी नामा हुई । श्रे० कुमरा ने अपने पिता श्रे० वरदेव के श्रेय के लिये श्री नागेन्द्रगच्छीय पूज्य श्री हरिभद्रसूरिशिष्य श्रीमद् विजयसेनसूरिके करकमलों से श्री नेमिनाथदेवप्रतिमा से सुशोभित बावीसवीं देवकुलिका वि० सं० १२६३ वैशाख शु० १४ शुक्रवार को श्री अर्बुदाचलस्थित श्री लूणवसतिकाख्य श्री नेमिनाथचैत्यालय में प्रतिष्ठित करवाई और उसी वसर पर श्री नेमिनाथदेव का पंचकल्याणकपट्ट भी लगवाया । वि० सं० १३०२ चैत्र शु० १२ सोमवार को ० कुमरा के पुत्र बड़, पूनड़ ने अपनी पितामही पद्मसिरी के श्रेयार्थ बावीसवीं देवकुलिका करवाई और कुमरा की स्त्री लोहिणी ने जिनप्रतिमा भरवाई, जो इसी बावीसवी देवकुलिका में अभी विराजमान है ।
1.
आंबड़
सांतणाग
कुमार
सोहिय
वरदेव (पद्म सिरी)
कुमरा ( लोहिणी)
1
पूनड़
गागउ
जसयांग
पूनदव
पाल्हण देल्ही
सावत
|
वाला
आल्ही
वीरा
देवकुमार शुभ ब्रह्मदेव
सन्तोष
ललतू
बोहड़ी
नीमलदेवी रूपलदेवी जला
सोमा
सीता
श्र० प्रा० जे० ले० सं० भा २ ले० ३०५ - ३०८५० १२६-७ । ले० ३०५ में वर्णित देदा ही देवकुमार है ।
तेजूदेवी