SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७.] : प्राग्वाट-इतिहास :: [द्वितीय मन्त्री भ्राताओं द्वारा विनिर्मित लूणसिंहवसति-हस्तिशाला नेमनाथचैत्यालय के मूलगर्भगृह के पीछे के भाग में तेजपाल ने विशाल हस्तिशाला का निर्माण करवाया था। इस हस्तिशाला में संगमर्मरप्रस्तर के १० दश हस्ति निम्नवत् बनवाये और प्रत्येक हस्ति की पीठ पर पालखी बनवाई और उसमें निम्नवत् अपने एक परिजन की मूर्ति, एक हस्तिचालक की मूर्ति और परिजन की मूर्ति के पीछे छत्र को हाथ में उठाये हुये एक छत्रधर-मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई । हाथी के चरण के नीचे आधार-प्रस्तर पर परिजन का नाम खुदवाया । इस समय एक भी परिजन की मूर्ति किसी भी हस्ति पर विद्यमान नहीं है । मूर्तियाँ थीं, ऐसे चिह्न प्रत्येक हस्ति पर अवशिष्ट हैं। महावतों की मूर्तियाँ भी प्रायः सर्व खण्डित हो चुकी हैं, परन्तु प्रत्येक हस्ति पर इस समय महावत-मूर्ति के दोनों पैर लटकते हुये अभी भी विद्यमान हैं। पहला हाथी महं० श्री चण्डप . दूसरा हाथी महं० श्री चण्डप्रसाद तीसरा , , , सोम चौथा " " " आसराज पाँचवां, , , लूणिग छट्ठा , , ,, मल्लदेव सातवां वस्तुपाल आठवां, , , तेजपाल नौवां , , ,, जैत्रसिंह " " " लावण्यसिंह हस्तिशाला में इन हाथियों के पीछे दिवार में तेजपाल ने दश श्रालयों में जिनको खत्तक कहते हैं, निम्नवत् मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करवाई:खत्तकों में प्रतिष्ठित मूर्तियाँ:खत्तक प्रतिष्ठित मूर्तियाँ पहला १. आचार्य उदयप्रभसूरि २. प्राचार्य विजयसेनसूरि ३. महं० श्री चण्डप ४. महं० श्री चांपलदेवी दूसरा १. श्री चण्डप्रसाद २. महं० श्री जयश्री तीसरा १. महं० श्री सोम २. महं० श्री सीतादेवी ३. महं० श्री आसण चौथा १. महं० श्री आसराज २. महं० श्री कुमारदेवों पांचवां १. महं० श्री लूणिग २. महं० श्री लूणादेवी छट्ठा १. महं० श्री मालदेव २. महं० श्री लीलादेवी ३. महं० श्री प्रतापदेवी सातवां १. महं० श्री वस्तुपाल २. महं० श्री ललितादेवी ३. महं श्री वेजलदेवी आठवां १. महं० श्री तेजपाल २. महं० श्री अनुपमादेवी अ० प्रा० ज० ले सं० ले० ३१६-३२० तेजपाल का सुहड़ादेवी के साथ विवाह अवश्य हस्तिशाला के बन जाने के पश्चात् ही हुआ है। क्योंकि पाठवें खत्तक में उसकी मूर्ति प्रतिष्ठित नहीं है । नेमनाथ-चैत्यालय के रंगमण्डप के दो गवाक्षों में वि० सं०१२६७ के शिलालेख सहडादेवी के नाम से है। अतः यह सिद्ध है कि तेजपाल का इसके साथ विवाह वि० सं०१२६० या १२६३ के पश्चात् ही हुआ है। चण्डप्रसाद की स्त्री का नाम जयश्री था-न० ना० नं० स०१६ श्लो०७ पृ० ५६
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy