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:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर मंत्री वंश और अबुदाचलस्थ श्री लूणसिंहवसतिकाव्य ::
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मह० लीला के पुत्र का नाम लूणसिंह था । अनुपमा का पितृ-परिवार चन्द्रावती के प्रतिष्ठित कुलों में से एक कुल था । दण्डनायक तेजपाल ने वि० सं० १२८७ में श्री अबु दगिरिस्थ लूणसिंहवसति की प्रतिष्ठा के छात्रसर पर तीर्थ की व्यवस्था एवं देख-रेख करने के लिये अति प्रतिष्ठित पुरुषों की एक व्यवस्थापिका समिति बनाई थी, उसमें अनुपमा के तीनों भ्राता तथा महं० राणिग और महं० लीला, जगसिंह, रत्नसिंह तथा इनकी परंपरित सन्तान को स्थायी सदस्य होना घोषित किया था । ऐतत्सम्बन्धी प्रमाणों से सम्भव लगता है कि वि० सं० १२८७ के लगभग अथवा पूर्व ठ० धरणिग की मृत्यु हो गई थी ।
खण्ड ]
अनन्य शिल्पकलावतार अर्बुदाचलस्थ श्री लूणसिंहवसतिकाख्य श्री नेमिनाथ - जिनालय
लूणसिंहवसहिका का निर्माण दण्डनायक तेजपाल ने अपनी पत्नी अनुपमा की देखरेख में वि० सं० १२८६. में प्रारम्भ किया था । तेजपाल अपनी प्यारी पत्नी अनुपमा का बड़ा आदर करता था। अनुपमा की कुक्षी से उत्पन्न सहिका का निर्माण और पुत्र लावणसिंह जिसे लूणसिंह भी कहते हैं, बड़ा तेजस्वी और वीर था । तेजपाल ने प्रतिष्ठोत्सव लूसिंह और अपनी पत्नी अनुपमा के कल्याणार्थ इस वसहिका का निर्माण करवाया था । अनुपमा चन्द्रावती के निवासी प्राग्वाटवंशीय श्रेष्ठि धरणिग की पुत्री थी। अनुपमा अतुल वैभव एवं मान प्राप्त करके भी अपनी जन्मभूमि चन्द्रावतीनगरी को नहीं भूली थी । चन्द्रावती ही नहीं, अनुपमा के हृदय में चन्द्रावती की सम्पूर्ण राज्यभूमि के प्रति श्रद्धा और महा मान था । बचपन में अपने पिता के साथ अर्बुदगिरि पर बसे हुये देउलवाड़ा में विनिर्मित विमल वसहिका के उसने अनेक बार दर्शन किये थे और विमलवसहिका के कलापूर्ण निर्माण का प्रभाव उसके हृदय पर अंकित हो गया था । वस्तुपाल जैसे महाप्रभावक एवं धन-बल-वैभव के स्वामी ज्येष्ठ को तथा तेजपाल जैसे महापराक्रमी शील और सौजन्य के अवतार पति को प्राप्त कर उसको अपनी अन्तरेच्छा पूर्ण
सिंहवसहिका का निर्माण वस्तुपाल तेजपाल के ज्येष्ठ भ्राता लुणिग जो अल्पायु में स्वर्गस्थ हो गया था के स्मरणार्थ करवाया गया है, ऐसी कुछ भ्रांति कतिपय इतिहासकारों को हो गई है। क्योंकि उसका नाम भी लूगिंग था और वसहिका का नाम भी लूणिगवसहिका है। निम्न श्लोकों से सिद्ध है कि इस वसहिका का निर्माण तेजपाल ने अपने पुत्र लूणसिंह और अपनी पत्नी अनुपमा के श्रेयार्थ करवाया था ।
'अनुपमा पत्नी तेजःपालस्य मंत्रिणः । लावण्यसिंहनामा यमायुष्मानेतयोः सुतः॥ ५६ ॥ तेजःपालेन पुण्यार्थं तयोः पुत्रकलत्रयोः । हर्म्य श्री नेमीनाथस्य तेने तेनेदमर्बुदे ॥ ६० ॥
प्रा० जै० ले० सं० ले० ६४ पृ० ८३ वित्रपुत्रमहं० श्री लूणसिंहस्य च पुण्यय शोभिवृद्धये श्रीलूणसिंहवस हिकाभिधानश्रीनेमिनाथदेव
प्रा० जै० ले० सं० ले० ६५ पृ० ८५-८६
'श्री तेजःपालेन स्वकीयभार्या महं० श्री अनुपमदेव्यास्तत्कुक्षि (सं०) श्रीमदबुदाचलोपरि देउलवाड़ा ग्रामे समस्तदेव कुलिकालंकृतं विशालहस्तिशालोपशोभितं चैत्यमिदं कारितं ' ॥