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शाह ताराचन्द्रजी::
देहावसान हो गया । आपकी धर्मपत्नी सचमुच एक धर्मपरायणा और भाग्यशालिनी स्त्री थी। धर्म-क्रिया करने में वह सदा अग्रसर रहा करती थी। वह सचमुच तपस्विनी और योग्य पत्नी थी। उसने वि० सं० २००३ से 'वीशस्थानक की ओली' आजीवन प्रारंभ की थी। उसने वि० सं० २००४ में अपने ज्येष्ठ पुत्र हिम्मतमलजी के साथ में 'अष्टमतप' का आराधन किया था तथा वि० सं० २००५ में भी पुनः दोनों माता-पुत्र ने पन्द्रह दिवस के उपवास की तपस्या की थी। श्री ताराचन्द्रजी ने उक्त दोनों अवसरों पर उनके तप के हर्ष में मंदिर और साधारण खाते में अच्छी रकम का व्यय करके उनके तप-आराधन का संमान किया था। ऐसी योग्य और तपस्विनी गृहिणी का वृद्धावस्था के आगमन पर वियोग अवश्य खलता ही है। प्रकृति के नियम के आगे सर्व समर्थ भी असमर्थ रहे पाये गये हैं।
पुनः वि० सं० २००६ में भी दोनों माता-पुत्र ने 'मासक्षमणतप' करने का दृढ़ निश्चय किया था, परन्तु ताराचन्द्रजी के वयोवृद्ध काका श्री गुलाबचन्द्रजी का अकस्मात् देहावसान हो जाने पर वे तप नहीं कर सकते थे, अतः उन्होंने वि० सं० २००७ में उक्त तप करने का निश्चय किया था। वि० सं० २००७ में उक्त तप प्रारम्भ करने के एक रात्रि पूर्व ही आपकी पत्नी रात्रि के मध्य में अकस्मात् बीमार हुई और दूसरे ही दिन श्रावण शुक्ला पंचमी को अकस्मात् देहावसान हो गया और फलतः श्री हिम्मतमलजी भी माता के शोक में उक्त तपाराधन नहीं कर सके। ___ऊपर दिये गये परिचय से पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि ताराचन्द्रजी जैसे समाजसेवी एवं अद्भुत परिश्रमी व्यक्ति की समाज में कितनी आवश्यकता है और उनके प्रति कितना मान होना चाहिए। आपके अनेक सरिजी महाराज साहब के गुणों पर मुग्ध होकर ही श्रीमद् विजययतीन्द्रसरिजी महाराज ने अपने एक पत्र में एकपत्र में आपका मूल्यांकन आपके प्रति जो शुभाशीर्वादपूर्वक भाव व्यक्त किये हैं, वे सचमुच ही आपका मूल्य करते हैं और अतः यहाँ वे लिखने योग्य हैं:
श्रीयुत् ताराचन्द्रजी मेघराजजी पौरवाड़ जैन,
पावा (मारवाड़) आप चुस्त जैनधर्म के श्रद्धालु हैं। सामाजिक एवं धार्मिक प्रतिष्ठोत्सव, उपधानोत्सव, संघ आदि कार्यों में निःस्पृहभाव से समय-समय पर सराहनीय सहयोग देते रहते हैं। 'श्री वर्द्धमान जैन विद्यालय', सुमेरपुर के लिये आप प्रतिदिन सब तरह दिलचस्पी रखते हैं । आप ऐतिहासिक साहित्य का भी अच्छा प्रेम रखते हैं, जिसके फलस्वरूप प्राग्वाटज्ञाति का इतिहास संपन्न उदाहरण रूप है । मारवाड़ी जैन समाज में आपके समान सेवाभावी व्यक्ति बहुत कम हैं । आपके इन्हीं निःस्वार्थादि गुण एवं आपके सेवाभावसंयुक्त जीवन पर हम आपको हार्दिक धन्यवाद देते हैं।
यतीन्द्रसरि, ता० २१-१०-५१