SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ ] :: प्राग्वाट इतिहास :: [ द्वितीय करता हुआ धवलकपुर लौट गया । इस विजय का पूर्ण श्रेय महामात्य वस्तुपाल को हैं । महामात्य अपनी वीरता से, रणनीतिज्ञता से तथा अपनी चातुर्य्यता से गूर्जर भूमि को यवनश्राततायियों से पदाक्रांत होने से बचा सका । राणक वीरधवल का कौशल भी यहाँ कम सराहनीय नहीं है । दिल्ली के बादशाह के साथ संधि और दिल्ली के दरबार में महामात्य का सम्मान बादशाह अल्तमश ने जब यह सुना कि अर्बुदघाटी के युद्ध में समस्त यवनसैन्य नष्ट हो चुका है, अत्यन्त क्रोधित हुआ । परन्तु सिन्ध में नासिरुद्दीन कुबेचा की शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी और बादशाह को सर्व बादशाह अल्तमश को गुज- प्रथम यह उचित लगा कि पहिले कुबेचा को परास्त किया जाय और यह ठीक भी रात पर आक्रमण करने के था, क्योंकि बादशाह को यह भय था कि कहीं कुबेचा दिल्ली पर आक्रमण नहीं कर लिये समय का नहीं मिलना बैठे । वि० सं० १२८४ (सन् १२२७ ) के अंत में कुबेचा को परास्त करके बादशाह दिल्ली लौटा तो बंगाल की राजधानी लखनौती में खिल्जी मलिकों के विद्रोह के समाचार मिले | तुरन्त सेना लेकर वह लखनौती पहुँचा और वहाँ विद्रोह शांत किया । इस समय के अंतर में महामात्य वस्तुपाल ने बादशाह के संबंधियों के साथ सम्मान और उदारतापूर्वक ऐसा सद्व्यवहार किया कि बादशाह ने गूर्जरदेश पर आक्रमण करने का विचार ही त्याग दिया । श्रेष्ठ पूनड़ का स्वागत नागपुर निवासी श्रेष्ठ देल्हा का पुत्र पूनड़ बादशाह अल्तमश की बीबी का प्रतिपन्न भाई था । उसने वि० सं० १२८६ के प्रारम्भ में द्वितीय बार शत्रुंजयतीर्थ की यात्रा करने के लिये विशाल संघ निकाला । इस संघ में १८०० अट्ठारह सौ बैल गाड़ियाँ थीं । यह विशाल संघ माण्डलिकपुर में जो वस्तुपाल तेजपाल की जन्मभूमि थी, पहुँचा । दंडनायक तेजपाल संघ का स्वागत करने के लिये वहाँ पहुँचा और संघ को सादर धवलकपुर में लाया । महामात्य ने और रागक वीरधवल ने पूनड़ का बड़ा सत्कार किया । स्वयं महामात्य संघ में सम्मिलित हुआ और उसको बादशाह की बीबी ने जब यह सुना तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुई और बादशाह से के विषय में बहुत कुछ कहा । शत्रुंजयतीर्थ की यात्रा करवाई । महामात्य वस्तुपाल की उदारता दूसरी घटना यह घटी कि स्वयं बादशाह की वृद्धा माता बादशाह के गुरु मालिम ( नामक या मौलवी) के साथ मख (मक्का) की यात्रा करने वि० सं० १२८७ में निकली और वह चलकर पत्तन (गुजरात) नगर के समीप ज्योंही आई महामात्य वस्तुपाल समाचार मिलते ही पत्तन पहुँचा और बादशाह की माता का और बादशाह के गुरु का बड़ा सत्कार किया । बादशाह की माता पत्तन से चलकर खम्भात पहुँची और एक नौवित्तिक के यहाँ ठहरी । रागक वीरधवल एवं मण्डलेश्वर लवणप्रसाद की संमति लेकर महामात्य वस्तुपाल ने यहाँ एक बादशाह की वृद्धा माता की हजयात्रा और महामात्य का उसको प्रसन्न करना और दिल्ली तक पहुँचाने जाना
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy