________________
१२४ ]
:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
संध्या का समय आया हुआ जानकर वस्तुपाल के कुछ सैनिक एवं नागरिक लोग अपने दोनों हाथों में दो-दो जलती हुई मशालें लेकर कोलाहल मचाते हुए तथा जय सोमनाथ की बोलते हुये भयंकर वेग से नगर में से दौड़ते हुये बाहर निकले । बस शंख की सैन्य का धैर्य छूट गया। वैसे शंख के सैनिकों में वस्तुपाल की सैन्य अपार है का डर तो छाया हुआ था ही, यह कौतुक देखकर वे भाग खड़े हुए। शंख अपने प्राण लेकर भागा । शंख की भागती हुई सैन्य का वस्तुपाल के सैनिकों ने पीछा किया । जहाजों पर गोले बर्षाये । वस्तुपाल की यह जीत एक अद्भुत ढ़ंग की थी। शंख हारकर तो लौटा, परन्तु खम्भात विजय करने की उसकी अभिलाषा एवं अपमान का प्रतिशोध लेने की इच्छा तीव्रतर हो उठी । द्वितीय युद्ध की तैयारी करने लगा । इधर वस्तुपाल ने अत्याचारी एवं अन्यायी राजकर्मचारियों को दण्डित करके तथा जीर्ण व्यापारियों से जलमण्डपिका एवं स्थलमण्डपिका-करों को उद्ग्रहीत कर अनन्त धन एकत्रित किया, जिससे राजकोष अति समृद्ध हो गया और वह सैन्य को समृद्ध और सशक्त बना सका । इस धन से उसने अनेक सुकृत्य के कार्य करने प्रारम्भ कर दिये । स्थान स्थान पर कुऐं, वापिकायें खुदवाई, प्रपायें लगवाई। चारों वर्णों के लिये ठहरने योग्य धर्मशालायें विनिर्मित करवाई । अ जैन, शैव एवं वैष्णव मन्दिर तथा मस्जिदें बनवाई' । जैन यतियों के लिये उपाश्रय, पौषधशालायें तथा संन्यासियों के लिये मठ, लेखकों के लिये लेखनशालायें बनवाई | खम्भात में ब्रह्मपुरी नाम की एक बसती बसाई तथा अनेक ब्राह्मणों को भूमि दान दी। श्री लक्ष्मीजी और वैद्यनाथ - महादेव के अति सुन्दर विशाल मन्दिर बनवाये । भट्टादित्य-मन्दिर में प्रतिमा की उत्तान पीठिका और मुकुट (स्वर्ण) और भीमेश्वर मन्दिर के शिखर पर स्वर्णकलश और ध्वजादण्ड करवाये । श्री सालिग मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया । जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार में भी पुष्कल द्रव्य व्यय किया । इस प्रकार महामात्य वस्तुपाल ने सर्व धर्मों एवं सर्व वर्ण तथा ज्ञातियों के धर्मों का मान किया । उनसे अपना निकट सम्पर्क स्थापित किया । दीनों, अनाथों, हीनों एवं निर्धनों के लिये भोजनशालायें स्थापित कीं, जहाँ उनको भोजन के अतिरिक्त वस्त्र और विश्राम भी मिलते थे । लेखकों एवं कवियों के लिये पोषण की अति सुन्दर व्यवस्थायें कीं । कुछ ही समय में खम्भात अति समृद्ध नगर गिना जाने लगा । पत्तन एवं धवल्लकपुर से उसकी समता की जाने लगी । खम्भात का व्यापार अति समुन्नत हो गया । खम्भात की शोभा भी कई गुणी हो गई, क्योंकि महामात्य ने अनेक सुन्दर बगीचे, बाग भी लगवाये थे । महामात्य वस्तुपाल ने सर्व वर्ण एवं ज्ञातियों को अपने दिव्य गुणों से मोहित कर लिया और वे पत्तन के सम्राटों के लिए प्राणप्रण से सेवायें करने को तैयार हो गये । इधर खम्भात में ये सुकृत के कार्य किये, उधर धवल्लकपुर में भी उसने खम्भात में प्राप्त हुए अनन्त धन का समुचित भाग भेजकर सैन्य की वृद्धि करने एवं समृद्ध बनाने का कार्य पूर्ण शक्ति से प्रारम्भ करवाया । शंख यद्यपि हारकर तो अवश्य लौटा था, परन्तु उसकी खम्भात जीत लेने की महत्त्वाकांक्षा का अन्त नहीं हो पाया था । अतः खम्भात में भी वस्तुपाल ने अपने सैन्य को अति बढ़ाया और समृद्ध किया ।
*Sankha suffered defeat. But he returned to Lata only to bide his time. Within a few months a confederate force of the Yadava Singhana, Devapala of Malwa and Sankha was marching on Cambay. G. G. part Ill; P. 217
की० कौ० सर्ग ४ श्लोक १० से. ४१