SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८] :: प्राग्वाट-इतिहास :: [द्वितीय जो उसके महाबलाधिकारी दंडनायकपन और राजत्व को सिद्ध करती है और दाहें हाथ में पूजा-सामग्री उसके विनयी भक्तरूप को दिखाती है। इसकी रचना कक्ष के मध्य में ठीक द्वार के भीतर ही वसति के मूलगंभारे में प्रतिष्ठित मू० ना० आदिनाथ-प्रतिमा का दर्शन करती हुई की गई है, जो उसके अनन्य पूजारी एवं वसति के निर्मातापन को अथवा वसतिविषय में उसकी प्रमुखता को सिद्ध करती है । महामन्त्री नेढ़ के पुत्र आनन्द के शिर पर गूजरी भाँत और बेड़ादार पगड़ी बंधी है, जो उसके वैभव और सुखी-जीवन का परिचय देती हैं । पृथ्वीपाल की मूर्ति के शिर पर भी पगड़ी है और पीछे दो चामरघरों की रचना है, जो उसके मन्त्री होने को सिद्ध करती है । समस्त मन्त्रियों के शिर पर लम्बे २ केश हैं, जो पीछे को सवारे गये हैं और पीछे उनमें ग्रन्थी दी हुई है। प्रत्येक महावतमूर्ति के मस्तिष्क पर गुंगरदार केश हैं, सवारे हुये हैं, पीछे को उनमें ग्रन्थी दी हुई है तथा मस्तिष्क नंगे हैं । समस्त मंत्रियों के शिर पर पगड़ी की रचना उनके श्रेष्ठिपन को तथा श्रीमन्तभाव को सिद्ध करती है और हस्ति पर उनकी आरूढ़ता उनके मन्त्रीपन को प्रकट करती है तथा चामरधरों की मूर्तियाँ सम्राटों द्वारा प्रदत्त उनके विशेष सम्मान और गौरव को प्रकट करती हैं। मं० पृथ्वीपाल ने हस्तिशाला में तीन पंक्तियों में उपरोक्त प्रतिमाओं को निम्नवत् संस्थापित करवाया। दक्षिण पक्ष पर द्वार के सामने उत्तर पक्ष पर १-महामन्त्री निनक ५-महाबलाधिकारी विमल ४-महामन्त्री नेढ़ २-दंडनायक लहर [समवशरण की रचना] ६-महामन्त्री धवल ३-महामन्त्री वीर ८-मन्त्री पृथ्वीपाल ७–मन्त्री आनन्द 8-समवशरण यह तृगढ़ीय समवशरण विमलशाह के अश्व के ठीक पीछे लहर और धवल के मध्य में बना है। इसमें तीन दिशाओं में साधारण और चौथी दिशा में त्रय तीर्थी के परिकरवाली जिनप्रतिमा विराजमान हैं । यह वि० सं० १२१२ में कोरंटगच्छीय नन्नाचार्य-संतानीय ओसवालज्ञातीय मन्त्री धंधुक ने बनवाया था। ८, 8 और १० वाँ हस्ति पृथ्वीपाल के कनिष्ठ पुत्र धनपाल ने अपने तथा अपने ज्येष्ठ भ्राता जगदेव और अपने किसी एक परिजन के निमित्त वि० सं० १२३७ में बनवा कर निम्नवत् संस्थापित किये हैं। जगदेव धनपाल द्वारा तीन हस्ति की मूर्ति हस्ति पर झूल पर ही बैठाई गई है। इसका आशय यह हो सकता है कि विनिर्मित वह मन्त्रीपद से अलंकृत नहीं था। १०-किसी परिजन ११-मंत्री धनपाल १२-जगदेव (अंगरक्षक) - आठवें और दशवें हस्ति पर महावतमूर्तियाँ और नौवें हस्ति पर अंबावाड़ी बनी है। शेष अन्य वस्तुयें विशेष हैं । विमलवसति के पूर्व पक्ष में एक ओर कोण में लक्ष्मी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy