SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :: मंत्री पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित विसवसति हस्तिशाला :: [ ६७ खण्ड ] १०- ५८ शिखर हैं। देवकुलिकाओं के ५७ और १ मूल शिखर । ११ - वसति की लम्बाई १४० फीट और चौड़ाई ६० फीट है।. १२ - देवकुखिका सं० २८ और १६ के मध्य में जो खाली भाग है, जहाँ पर केसर घोटी जाती है, उसके पीछे दो खाली कोठरियाँ हैं। एक में परिचूर्ण सामग्री रक्खी जाती है और दूसरी में तलगृह है । इस तलगृह में पत्थर और धातु की खण्डित प्रतिमायें रखी हुई हैं, जो १४वीं शताब्दी के पश्चात् की हैं । मन्त्री पृथ्वीपाल द्वारा विनिर्मित विमलवसति हस्तिशाला पूर्वाभिमुख बिमलवसति के ठीक सामने पश्चिमाभिमुख एक सुदृढ़ कक्ष में हस्तिशाला बनी है। दोनों के मध्य में रंगमण्डप की रचना है, जो इन दोनों को जोड़ता है । इस हस्तिशाला का निर्माण बिमलवसति की कई एक देवकुलिकाओं का जीर्णोद्धार करवाते समय वि० सं० १२०४ में मंत्री पृथ्वीपाल ने करवाकर इसमें अपनी और अपने छः पूर्वजों की सात हस्तियों पर सात मूर्त्तियाँ और महाबलाधिकारी दंडनायक विमलशाह की मूर्चि एक अश्व पर विराजित करवाई । हस्तियों पर महावतचिंत्र बैठाये और प्रत्येक पूर्वज-मूर्त्ति के पीछे दो-दो चामरधरों की प्रतिमाओं की रचना करवाई । प्रत्येक हस्ति को अंबावाड़ी, कामदार झुल, मस्तिष्क, पृष्ट आदि अंगों के सर्व प्रकार के आभूषणों से युक्त विनिर्मित करवाया । विमलशाह की प्रतिमा अश्व पर आरूढ़ करवाई । अश्व अपने पूरे साज से सुसज्जित करवाया गया । विमलशाह के पीछे अश्व की पृष्ट के पिछले भाग पर एक छत्र धर की प्रतिमा बैठाई, जो विमलशाह के मस्तिष्क पर छत्र किये हुये हैं । विमलवसति के मूलगंभारा में विराजित मू० ना० आदिनाथप्रतिमा के ठीक सामने उसके दर्शन करती हुई अश्वारूढ़ विमलशाह की मूर्ति है तथा दायें हाथ में कटोरीथाली आदि पूजा की सामग्री है। मूर्तियों की स्थापना उनके जन्मानुक्रम के अनुसार तीन पंक्तियों में है । पद और गौरव को लेकर भी मूत्रियों के सिर की रचनाओं में अन्तर रक्खा गया है। महामन्त्री निन्नक, उसके पुत्र लहर और विमलशाह के ज्येष्ठ भ्राता नेढ़ को पुत्र धवल की मूर्तियाँ इस समय विद्यमान नहीं हैं, अतः नहीं कहा जा सकता कि उनकी मूर्तियों की रचना में क्या अधिकता, विशेषता थी । शेष पूर्वजों की मूर्तियों की शिर की रचना इस प्रकार है। दंडनायक लहर के पुत्र धर्मात्मा वीर के सिर पर शिखराकृति की पगड़ी बंधी है । विमलशाह के ज्येष्ठ भ्राता वयोवृद्ध नेढ़ के सिर पर गाँठदार कलशाकृति की पगड़ी बंधी है और लम्बी दाढ़ी है, जो ज्येष्ठभाव को प्रकट करती है । विमलशाह की मूर्ति अखारूढ़ है, जो उसके सैनिकजीक्त को प्रकट करती है। उसके शिर पर सुन्दर मुकुट की रचना है और उसके पीछे अस्त्र की पृष्ट के पिछले भाग पर बैठी हुई बत्रधर की मूर्ति लब किये हुये है
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy