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:: शाह ताराचन्द्रजी::
योग्य बन चुका है। उक्त छात्रालय आपके शिक्षाप्रेम, समाजसेवा, विद्याप्रचारप्रियता, धर्मभावनाओं का उज्ज्वल एवं ज्वलंत प्रतीक है।
कुशालपुरा (मारवाड़) में ६० घर हैं। जिनमें केवल पाँच घर मंदिराम्नायानुयायी हैं। मूर्तिपूजक श्रावकों के कम घर होने से वहाँ के जिनालय की दशा शोचनीय थी। आपके परिश्रम से एवं सुसम्मति से वहाँ के निवासी कुशालपुरा के जिनालय की बारह श्रावकों ने नित्य प्रभु-पूजन करने का व्रत अंगीकार किया, जिससे मंदिर में होती
तिष्ठा में श्रापका सहयोग. अनेक अशुचिसम्बन्धी आशातनायें बंद हो गई तथा आपके ही परिश्रम एवं प्रेरणा से फिर उक्त मंदिर की वि० सं० १९६३ में प्रतिष्ठा हुई, जिसमें आपने पूरा २ सहयोग दिया। थोड़े में यह कहा जा सकता है कि प्रतिष्ठा का समूचा प्रबंध आपके ही हाथों रहा और प्रतिष्ठोत्सव सानन्द, सोत्साह सम्पन्न हुआ । यह आपकी जिनशासन की सेवाभावना का उदाहरण है।
_ मरुधरप्रान्त में इस शताब्दी में जितने जैनप्रतिष्ठोत्सव हुये हैं, उनमें बागरानगर में वि० सं० १९६८ मार्गशिर शु. १० को हुआ श्री अंजनश्लाका-प्राणप्रतिष्ठोत्सव शोभा, व्यवस्था, आनन्द, दर्शकगणों की संख्या बागरा में प्रतिष्ठा और उसमें की दृष्टियों से अद्वितीय एवं अनुपम रहा हैं । लेखक भी इस प्रतिष्ठोत्सव के समय में श्री
आपका सहयोग, राजेन्द्र जैन गुरुकुल', बागरा में प्रधानाध्यापक था और प्रतिष्ठोत्सव में अपने विद्यालय के सर्व कर्मचारियों एवं छात्रों, विद्यार्थियों के सहित संगीतविभाग और प्रवचन विभाग में अध्यक्ष रूप से कार्य कर रहा था । आपश्री का इस महान् प्रतिष्ठोत्सव के हित सामग्री आदि एकत्रित कराने में, वरघोड़े के हित शोभोपकरणादि राजा, ठक्कुरों से मांगकर लाने में बड़ा ही तत्परता एवं उत्साहभरा सहयोग रहा था।
वि० सं० १६६८ के फाल्गुण मास में वाकली के श्री मुनिसुव्रतस्वामी के जिनालय में देवकुलिका की प्रतिष्ठा श्रीमद् जैनाचार्य हर्षसूरिजी की तत्त्वावधानता में हुई थी। नवकारशियाँ कराने वाले सद्गृहस्थ श्रावक वाकली में देवकुलिका की श्रीमंतों को जब सन्मान के रूप में पगड़ी बंधाने का अवसर आया, उस समय बड़ा प्रतिष्ठा और उसमें श्रापका भारी झगड़ा एवं उपद्रव खड़ा हो गया और वह इतना बढ़ा कि उसका मिटाना सराहनीय भाग
असम्भव-सा लगने लगा। उस समय आपने श्रीमद् आचायेश्री के साथ में लगकर तन, मन से सद्प्रयत्न करके उस कलह का अन्त किया और पागड़ी बंधाने का कार्य-क्रम सानन्द पूर्ण करवाया । अगर उक्त झगड़ा उस समय वाकली में पड़ जाता तो बड़ा भारी अनिष्ट हो जाता और वाकली के श्रीसंघ में भारी फूट एवं कुसंप उत्पन्न हो जाते । .........
गुड़ा बालोतरा में हुई बिंबप्रतिष्ठा में आपका सहयोग-वि० सं० १९६६ में गुड़ा बालोतरा के श्री संभवनाथ-जिनालय की मूलनायक प्रतिमा को उत्थापित करके अभिनव विनिर्मित सुन्दर एवं विशाल नवीन श्री आदिनाथजिनालय में उसकी पुनः स्थापना महामहोत्सव पूर्वक की गई थी। उक्त प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर आप ने साधन एवं शोभा के उपकरणों को दूर २ से लाकर संगृहित करने में संघ की पूरी पूरी सहायता की थी और अपनी धर्मश्रद्धा एवं सेवाभावना का उत्तम परिचय दिया था।
___ श्री 'पौरवाड़-संघ-सभा', सुमेरपुर के स्थायी मंत्री बनना-गोडवाड़-अड़तालीस आदि प्रान्तों में बसने वाले प्राग्वाटबन्धुओं की यह सभा है । इसका कार्यालय 'श्री बर्द्धमान जैन बोर्डिंगहाउस', सुमेरपुर में है। अधिकांशतः प्रति वर्ष इस सभा का अधिवेशन सुमेरपुर में ही होता है और उसमें ज्ञाति में प्रचलित कुरीतियाँ, बुरे रिवाजों को