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: प्राग्वाट - इतिहास ::
'श्री वर्द्धमान जैन बोर्डिंग, सुमेरपुर' के जन्मदाता और कर्णधार भी आप ही हैं । वि० सं० १६६० में श्राप अपेन्डीस्साईडनामक बीमारी से ग्रस्त हो गये थे । एतदर्थ उपचारार्थ आप शिवगंज (सिरोही) के सरकारी औषधालय में भर्ती हुये । शिवगंज जवाई नदी के पश्चिम तट पर बसा हुआ है और सुन्दर, स्वस्थ एवं सुहावना कस्बा है। जलवायु की दृष्टि से यह कस्बा राजस्थान के स्वास्थ्यकर स्थानों में अपना प्रमुख स्थान रखता है। यहां नीमावली बड़ी ही मनोहर और स्वस्थ वायुदायिनी है। जवाई के पूर्वी तट पर उन्द्री नामक छोटा सा ग्राम और उससे लग कर अभिनव बसी हुई सुमेरपुर नाम की सुन्दर बस्ती और व्यापार की समृद्ध मंडी श्रा गई है। इसका रेल्वे स्टेशन ऐरनपुर है, बी० बी० एण्ड सी० आई० रेल्वे के आबू लाईन के स्टेशनों में विश्रुत है। आप शिवगंज, उद्री - सुमेरपुर के जलवायु एवं भौगोलिक स्थितियों से अति ही प्रसन्न हुये और साथ ही शिवगंज, सुमेरपुर को समृद्ध व्यापारी नगर देख कर आपके मस्तिष्क में यह विचार उठा कि अगर जवाई के पूर्वी तट पर सुमेरपुर में जैन छात्रालय की स्थापना की जाय तो छात्रों का स्वास्थ्य अति सुन्दर रह सकता है और दो व्यापारी मंडियों की उपस्थिति से खान-पान-सामग्री सम्बन्धी भी अधिकाधिक सुविधायें प्राप्त रह सकती हैं। आपसे आपकी रुग्णावस्था में जो भी सज्जन, सद्गृहस्थ मिलने के लिए आते आप वहाँ के स्वास्थ्यकर जलवायु, सुन्दर उपजाऊ भूमि, जवाई नदी के मनोरम तट की शोभा का ही प्रायः वर्णन करते और कहते मेरी भावना यहाँ पर योग्य स्थान पर जैन छात्रालय खोलने की है । आगन्तुक अतिथि आपकी सेवापरायणता, समाजहितेच्छुकता, शिक्षणप्रेम से भविध परिचित हो चुके थे । वे भी आपकी इन उत्तम भावनाओं की सराहना करते और सहाय देने का भाश्वासन देते थे । अंत में आपने सुमेरपुर में अपने इष्ट मित्र जिनमें प्रमुखतः मास्टर भीखमचन्द्रजी हैं एवं समाज के प्रतिष्ठितजन और श्रीमंतों की सहायता से वि० सं० १६६१ मार्गशिर कृष्णा पंचमी को 'श्री वर्द्धमान जैन बोर्डिंग हाउस' के नाम से छात्रालय शुभमुहूर्त में संस्थापित कर ही दिया। तब से आप और मास्टर भीखमचन्द्रजी उक्त संस्था के मंत्री हैं और अहर्निश उसकी उन्नति करने में प्राण-प्रण से संलग्न रहते हैं । आज छात्रालय का विशाल भवन और उसकी उपस्थिति सुमेरपुर की शोभा, राजकीय स्कूल की वृद्धि एवं उन्नति का मूल कारण बना हुआ है । इस छात्रालय के कारण ही आज सुमेरपुर जैसे अति छोटे ग्राम में हाई स्कूल बन गई है । आज तक इस छात्रालय 'छत्र-छाया में रह कर सैंकड़ों छात्र व्यावहारिक एवं धार्मिक ज्ञान प्राप्त करके गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट हो चुके हैं और सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं । लेखक को भी इस छात्रावास की सेवा करने का सौभाग्य सन् १६४७ अगस्त ५ से सन् १६५० नवम्बर ६ तक प्राप्त हुआ है। मैं इतना ही कह सकता हूँ कि मेरे सेवाकाल में मैंने यह अनुभव किया कि उक्त छात्रालय मरुधरदेश के अति प्रसिद्ध जैन संस्थाओं में छात्रों के चरित्र, स्वास्थ्य, अनुशासन की दृष्टि से अद्वितीय और अग्रगण्य है ।
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श्री वर्द्धमान जैन बोर्डिंग, सुमेरपुर की संस्थापना और आपका विद्या- प्रेम आदि
आप वि० सं० २००२ तक तो उक्त छात्रालय के मन्त्री रहे हैं और तत्पश्चात् आप उपसभापति के सुशोभित पद से अलंकृत हैं। आपके ही अधिकांश परिश्रम का फल है और प्रभाव का कारण है कि आज छात्रालय का भवन एक लक्ष रुपयों की लागत का सर्व प्रकार की सुविधा जैसे बाग, कुआ, खेत, मैदान, भोजनालय, गृहपतिआश्रम, छात्रावासादि स्थानों से संयुक्त और अलंकृत है। छात्रावास के मध्य में आया हुआ दक्षिणाभिमुख विशाल सभाभवन बड़ा ही रमणीय, उन्नत और विशाल है। मंदिर का निर्माण भी चालू है. और प्रतिष्ठा के