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________________ खण्ड ] :: प्राचीन गूर्जर-मन्त्री-वंश और महामात्य पृथ्वीपाल :: [ ७७ अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसति की जो हस्तिशाला है, उसका निर्माण मं० पृथ्वीपाल ने करवाया और उसमें वि० सं० १२०४ फाल्गुण शुक्ला दशमी शनिश्चरवार को महामात्य निन्नक, दंडनायक लहर, महामात्य विमलवसति की हस्तिशाला वीर और नेढ़ तथा सचिवेन्द्र धवल, आनंद और अपने स्मरणार्थ सात हाथियों को का निर्माण बनवाकर प्रतिष्ठित किया और प्रत्येक हाथी पर उक्त व्यक्तियों में से एक एक की मूर्ति स्थापित की और प्रत्येक मूर्ति के पीछे दो-दो चामरधरों की मूर्तियाँ भी निर्मित करवाई तथा हस्तिशाला के द्वार के मुख्य भाग में विमल मंत्री की घुड़सवार मूर्ति स्थापित की। ... मंत्री पृथ्वीपाल का प्रसिद्ध एवं अति महत्वशाली कार्य अर्बुदगिरिस्थ विमलवसति का अद्भुत जीर्णोद्धार है । यह जीर्णोद्धार उसने वि० सं० १२०६ में करवाकर श्रीमद् शीलभद्रसूरि के शिष्यप्रवर श्रीमद् चन्द्रसूरि के विमलवसति का जीर्णोद्धार - करकमलों से प्रतिष्ठित करवाया । मं. पृथ्वीपाल ने इस शुभ अवसर पर अर्बुदगिरि की संघ सहित यात्रा की और प्रतिष्ठा-कार्य अति धाम-धूम से करवाया। समुद्धार बैसा गौरवशाली कार्य और वह भी फिर अर्बुदाचल पर विनिर्मित अति विशाल, सुख्यात विमलवसति का, जिसमें अतुल धन व्यय किया गया होगा, मं० पृथ्वीपाल ने उसका लेख एक साधारण श्लोक में करवाया, इससे उसकी निरभिमानता, निरीहता और सत्यधर्मनिष्ठा प्रतीत होती है। मंत्री पृथ्वीपाल अपने नाम के अनुसार ही सचमुच पृथ्वीपालक था। जैसा वह धर्मानुरागी था, वैसा ही साहित्यसेवी एवं प्रेमी भी था। वह स्त्री और पुरुषों की परीक्षा करने में अति कुशल था। हाथी, घोड़े और रत्नों का भी वह अद्वितीय परीक्षक था। इन्हीं गुणों के कारण वह श्रीकरण जैसे उच्च पद पर प्रतिष्ठित था। 'अह निचयकारावियजालिहारयगच्छरिसहजिणभवणे । जणयकए जणणीए उण पंचासरयपासगिहे ।। चड्डावल्लीयमि उ. गच्छे मायामहीए सुहहेउं । भणहिल्लवाडयपुरे काराविया मंडवा जेण ॥ ....""जो रोहाइयवारसगे सायणवाड़यपुरे उ संतिस्स | जिराभवणं कारवियं मायामहवोल्हस्स कए । ता अन्चुयगिरिसिरि नेढ़-विमल जिणमन्दिरे करावेउं । मउयकमइन्बजयं मज्झे पुणो तस्स ।।' D. C. M. P. (G.O. V. LXXVI.) P. 255. (चन्दप्रभस्वामि-चरित्र) १-प्रा० ० ले० सं० भा• २ ले०३८.. २-अ० प्रा० जैकले०सं०भा०२ ले०२३३. सं०१२०६॥ 'श्री शीलभद्रसूरीणां शिष्यैः श्रीचन्द्रसूरिभिः । विमलादिसुसंघेन युतैस्तीर्थमिद स्तुते ।। अयं तीर्थसमुद्धारोऽत्यदभूतोऽकारि धीमता । श्रीमदानन्दपुत्रेण श्रीपृथ्वीपालमंत्रिणा ।।' अ० प्रा० जै० ले० सं० भा० २ ले०७२ अंचलगच्छीय 'मोटी पट्टावली' (गुजराती) प्रकाशित वि० सं० १९८५ कात्तिक शु० पूर्णिमा पृ०११७ पर पृथ्वीपाल के पितामह धवल के लघु भ्राता लालिग के पौत्र दशरथ के नेढ़ा और वेढा नामक दो पुत्रों का होना तथा उनका गुर्जर-सम्राट् कर्ण के मंत्री होना, उनके द्वारा भारासण, चंद्रावती में अनेक जिनमन्दिरों का बनवाना तथा विमलवसति की हस्तिशाला का भी उन्हीं के द्वारा बनवाया - जाना लिखा है, परन्तु इतने शिलालेखों में नेढ़ा-वेढा का कोई लेख प्राप्त नहीं हुआ है अतः विमलवंश में उनकी यहाँ परिगणना नहीं की गई है।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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