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________________ ::प्राग्वाट-इतिहास: [द्वितीय पाल नाना के भी नागपाल और नागार्जुन दो पुत्र थे। जगदेव का विवाह मालदेवी से तथा धनपाल का रूपिणी के साथ हुआ । जगदेव और धनपाल के महणदेवी नामक एक छोटी बहिन थी। मन्त्री धवल के परिवार में पृथ्वीपाल अति प्रसिद्ध पुरुष हुआ । यह महाबुद्धिशाली, उदारहृदय, कुशलनीतिज्ञ एवं धर्मात्मा पुरुष था । गूर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंह तथा कुमारपाल का यह अत्यन्त विश्वासपात्र मन्त्री था। महामहिम महामात्य पृथ्वी- पृथ्वीपाल के अनेक गुणों एवं सुकृत कार्यों के कारण मन्त्री धवल के परिवार की ___ ख्याति राज्य, समाज एवं राजसभा में अत्यधिक बढ़ गई । पूर्वजों के सदृश मन्त्री पृथ्वीपाल ने अपने अतुल धन को नव जिन-मन्दिरों के बनाने में, नवजिनबिंबों की प्रतिष्ठा करवाने में तथा जीर्ण मन्दिरों का उद्धार करने में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ व्यय किया। . अणहिलपुरपत्तन में मन्त्री पृथ्वीपाल ने जालिहरगच्छ के आदिनाथ-जिनालय में पिता के श्रेयार्थ, पंचासरापार्श्वनाथमंदिर में माता के श्रेयार्थ तथा चंद्रावतीगच्छ के जिनमंदिर में अपनी मातामही (नानी) के श्रेयार्थ मंडप पत्तन और पाली में निर्माण- बनवाये । मरुधर-प्रदेश के अन्र्तगत पाली एक प्रसिद्ध नगर है। पाली को प्राचीन ___ ग्रंथों में पल्लिका लिखा है । पाली के महावीर-मंदिर में जिसको नवलखामन्दिर भी कहते हैं, मंत्री पृथ्वीपाल ने अपने कल्याण के लिये भ० अनंतनाथ और भ० विमलनाथ के बिंबों की वि० सं० १२०१ ज्येष्ठ कृ. ६ रविवार को प्रतिष्ठा करवाई । नवलखामन्दिर एक भव्य एवं प्राचीन जिनालय है। रोह आदि पारह ग्रामों का एक मंडल है । इस मंडल में आये हुये सायणवाड़पुर में अपने मातामह अर्थात् नाना के श्रेयार्थ श्रीशांतिनाथ-जिनालय बनवाया । इस से यह सिद्ध होता है कि पृथ्वीपाल का अपने नाना और नानी के प्रति कितना भक्तिभरा प्रेम था। कार्य महवा ................."श्री पृथ्वीपालात्मजमहामात्य [धनपालेन महामा] त्य श्री पृथ्वीपालसत्कमातृश्रीपद्मावतीश्रेयार्थ श्री अभिनं] दनदेवप्रतिमा कासहृदगच्छे श्री सिंहमारिभिः॥' अ० प्रा० ० ले० सं०भा०२ ले १०३ 'संवत् १२१२ [व.] माघ सुदि बुधे दशम्या महामात्य श्रीमदानन्द महं० श्री सलूणयोः पुत्रेण ठ० श्री नानाकेन ठ० श्री......" 'त्रिभुवनदेवीकुक्षिसमुद्भुतस्वसुत..." अ० प्रा० ० ले० सं०भा०२ ले०१६६ ..............."श्री पृथ्वीपालभार्या महं० श्री नामलदेव्या आत्मश्रेयसे............. अ० प्रा० जै० ले० स० भा०२ ले १०४ 'तस्स (आणंदस्स) ससिविमलसीलालंकारविरायमाणसव्वंगी। गुरु विणय............" ...........""रत्तमणा ।। .............." मंजूसा। पउमावइ." ............"पिययमा जाया ।। D.C. M. P. (G.O. V. LXX VI.) P. 254 (चन्द्रप्रभस्वामि-चरित्र) 'श्री शांतिनाथस्य ॥ संतत् १२४५ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ महामात्यश्रीपृथीपालात्मजमहामात्यश्रीधनपालेन वृ० भ्रातृ ठ० श्री जगदेवश्रेयसे श्री शांतिनाथ प्रतिमा..............." अ० प्रा० जै० ले० सं० भा०२ ले०६८ 'श्री मदानन्द सुत ठ० श्रीनाना सुत ठ० श्रीनागपालेन मात त्रिभुवनदेव्याः, अ० प्रा० जै० ले० सं० भा०२ ले०१५३ .."10 श्री नानाकेन ठ० श्री त्रिभुवनदेवीकुक्षिसमुद्भुतस्वस्त दंड० श्री नागार्जुन 'अ० प्रा० जै० ले०सं०भा० २ ले०१६६ ......""श्री पृथ्वीपालात्मज ठ० श्री जगदेवपनि ४० श्रीमालदेव्या..............." अ० प्रा० ले० जे० सं०भा०२ ले०१०८ "प्राग्वाटवंशतिलकायमान [महा मात्य श्रीधनपालभार्या महं० श्री०रूपिन्या(गया)""०प्रा०ले०सं०भा० २ ले०१०६ -: गु० प्रा० मं० २० परि० नं०२ पृ०११६३. 'जालिहरगच्छ विद्याधरगच्छ की एक शाखा थी। इस शाखा में प्रसिद्ध विद्वान् देवसरि हुये हैं, जिन्होंने वि० सं०१२५४ में बढ़वाण नगर में 'पद्मप्रभ चरित्र' नामक ग्रंथ की प्राकृत भाषा में रचना की है। -गु० प्रा० म० वंश पृ०११६० च० ले० नं०१
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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