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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
शाह ताराचन्द्रजी और आपका परिवार
इनके पिता मेघराज जी का जन्म वि० सं० १६२७ में खीमाड़ा में ही हुआ था। इनके पितामह शाह मनाजी खीमाड़ा को छोड़कर पावा में वि० सं० १६२८ में सपरिवार आकर बस गये थे। श्री ताराचन्द्रजी का जन्म पावा में ही वि० सं० १९५१ चैत्र कृष्णा पंचमी को हुआ था। ये जब लगभग चौदह वर्ष के ही हुये थे कि इनकी प्यारी माता कसुंबादेवी का देहावसान वि० सं० १३६४ आश्विन कृष्णा एकम को हो गया । शाह मेघराजजी के जीवन में एकदम नीरसता और उदासीनता आ गई। परन्तु इससे सात मास पूर्व श्री ताराचन्द्रजी का विवाह वलदरा निवासी श्रेष्ठ पन्नाजी गज्जाजी की सुपुत्री जीवादेवी नामा कन्या से फाल्गुण कृष्णा द्वितीया को कर दिया गया था । इससे गृहस्थ का मान बना रह सका । श्रीमती जीवादेवी की कुक्षी से हिम्मतमलजी, धमीबाई, कंकुबाई, उम्मेदमलजी, सुखीबाई, चम्पालालजी, बनवाई और तीजाबाई नाम की पाँच पुत्रियाँ और तीन पुत्र उत्पन्न हुये । ज्येष्ठ पुत्र हिम्मतमलजी का जन्म वि० सं० १६६६ कार्त्तिक कृष्णा अष्ठमी (८) को हुआ । इनका विवाह खिवाणदीग्रामनिवासी शाह भभूतमलजी धनाजी की सुपुत्री लादीबाई से हुआ । इनके केसरीमल, लक्ष्मीचन्द्र, देवीचन्द्र, गीसूलाल नाम के चार पुत्र उत्पन्न हुये और पाँचवीं और छठी संतान विमला और प्रकाश नामा कन्या हुई । द्वितीय सन्तान थमीबाई थी । धमीबाई का विवाह भूतिनिवासी शाह 'पुखराजजी ' समीचन्द्रजी के साथ में हुआ था । तृतीय संतान कंकुबाई नामा कन्या का विवाह बाबा ग्रामनिवासी शाह 'कपूरचन्द्रजी' रत्नचन्द्रजी के साथ में हुआ है। चौथी संतान उम्मेदमलजी नाम के द्वितीय पुत्र हैं । इनका जन्म वि० सं० १६७६ पौष शु० १० को हुआ था । इनका विवाह सांडेराव ग्रामनिवासी शाह उम्मेदमलजी पोमाजी की सुपुत्री रम्भादेवी के साथ में हुआ है । इनके सागरमल, बाबूलाल और सुशीलाबाई नाम की एक कन्या और दो पुत्र हुये । सुखीबाई नाम की पाँचवी सन्तान बाल-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो गई । चम्पालालजी आपकी ast संतान और तृतीय पुत्र हैं । इनका जन्म वि० सं० १६८० भाद्रपद शु० द्वितीया को हुआ था | चांदराई - ग्रामनिवासी शाह जसराजजी केसरीमलजी की सुपुत्री हुलाशबाई के साथ में आपका विवाह हुआ है । इनके भंवरलाल, कुन्दनलाल और जयन्तीलाल नाम के तीन पुत्र हैं। सातवीं संतान ब्रजवाई नामा पुत्री है । इनका विवाह श्रहोरनिवासी शाह 'ऋषभदासजी' नत्थमलजी के साथ में हुआ है। आठवीं संतान तीजाबाई नाम की कन्या थी, जो शिशुवय में ही मरण को प्राप्त हुई ।
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श्री ताराचन्द्रजी बचपन से ही परिश्रमी, निरालसी और बुद्धिमान थे ही हैं, परन्तु सूझ और समझ में आप पढ़े-लिखों से भी आगे ठहरते हैं। श्री वरकारणा जैन विद्यालय लग गये और व्यापारी समाज में अच्छी ख्याति के संयुक्त मंत्री बनना. प्रसिद्ध विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थाओं में श्री (मारवाड़ा) का नाम भी अग्रगण्य हैं। यह विद्यालय वि० सं० १९८४ माघ आपको योग्य, बुद्धिमान एवं कार्यकुशल देखकर उक्त विद्यालय की कार्यकारिणी समिति ने वि० सं १६८५ में संयुक्त मंत्री नियुक्त किये। आपने दो वर्ष वि० सं० १६८७ तक अपने पद का भार बड़ी बुद्धिमतापूर्वक निर्वाहित किया । इससे आपका शिक्षा-संबंधी प्रेम प्रकट होता है। इस समय आप वि० सं० २००७ से ही उक्त विद्यालय की कार्य-कारिणी समिति के सदस्य हैं ।
यद्यपि आप पढ़े-लिखे तो साधारण छोटी ही आयु में आप व्यापार में प्राप्त करली। जैन समाज के अति पार्श्वनाथ जैन विद्यालय', वरकाणा शुक्ला ५ को संस्थापित हुआ था ।