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प्राग्वाट-इतिहास:. :
[प्रथम
इन गोत्रो के कुल अधिकतर मोडवाड़, जालोर के प्रगणों में ही बसते हैं । कई एक कुलों के गोत्र मालवा, गुजरात के प्रसिद्ध नगरों में भी जाकर बस गये हैं।
सिरोही (राजस्थान) में एक माहड़गच्छीय कुलगुरुपौषधशाला विद्यमान है ।१ इस पौषधशाला के भट्टारक भोसवाल एवं प्राग्वाटज्ञाति के कई एक श्रावककुलों के कुलगुरु हैं। इनके आधिपत्य में प्राग्वाट-ज्ञातीय निम्नसिरोही की कुलगुरु-पौषध- 'लिखित ४२ (बयालीस) गोत्रों का लेखा है। इन गोत्रों के कुल अधिकांशतः सिरोहीशाला
राज्य में और मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के गोडवाड़ (बाली और देसूरी-प्रगणा), जालोर, भिन्नमाल, जसवन्तपुरा, गढ़सिवाणा के प्रगणों में वसते हैं । कुछ कुल मालवान्तर्गत के रतलाम, धार, देवास जैसे प्रसिद्ध नगरों और उनके प्रगणों में भी रहते हैं।
१ वांकरिया चौहास . २ विजयानन्दगोत्र परमार . ३ गौतमगोत्रीय ४ स्वेतविर परमार ., ५ धुणिया परमार.. ६ विमलगोत्र परमार .७ रत्नपुरिया चौहाण ८ पोसीत्रागोत्रीय
६ गोयलगोत्रीय १० स्वेतगोत्र चौहाण ११ परवालिया चौहाण १२ कुंडलगोत्र परमार १३ ऊड़ेचागोत्र परमार १४ भुणशखा परमार १५ मंडाडियागोत्रीय १६ गूर्जरगोत्रीय १७ भीलड़ेचा बोहरा १८ नवसरागोत्रीय . १६ रेवतगोत्रीय २० डमालगोत्रीय २१ नागगोत्र बोहरा .. २२ वर्द्धमानगोत्र बोहरा २३ डणगोत्र परमार २४ विशाला परमार १५ बीबलेचा परमार. २६ माढ़रगोत्रीय
२७ जाबरिया परमार २८ दताणिया परमार २६ मांडवाड़ा चौहाण ३० काकरेचा चौहाण ३१ नाहरगात्र सोलंकी ३२ वोराराठोड़ मंडलेचा ३३ कुमारगोत्रीय ३४ घीणोलिया परमार ३५ मलाणिया परमार , ३६ कासवगोत्र परमार ३७ वसन्तपुरा चौहाण ३८ नागगोत्र सोलंकी
इन उपरोक्त अड़तीस गोत्रों के प्रथम जैनधर्म स्वीकार करने वाले मूलपुरुषों का प्रतिबोध-समय विक्रम की आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ के वर्ष बतलाये जाते हैं। ३६ आंवलगोत्र कोठारी ४० बायागोत्रीय ४१ वोरागोत्रीय ४२ कोलरेचागोत्रीय .
इन चार गोत्रों के प्रथम जैनधर्म स्वीकार करने वाले मूलपुरुषों का प्रतिबोध-समय जिनमें, नथम एक का विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में और शेष तीन के वर्ष बारहवीं शताब्दी में बतलाये जाते हैं ।
वाली नामक नगर मरुधरप्रदेश के गोडवाड़ (गिरिवाट) नामक प्रान्त में बसा हुआ है । यहाँ भी एक कुलगुरु-पौषधशाला विद्यमान है ।२ इस पौषधशाला के भट्टारक ओसवाल और प्राग्वाटज्ञाति के कई एक श्रावककुलों बाली की कुलगुरु-: के कुलगुरु हैं । इनके आधिपत्य में प्राग्वाटज्ञातीय निम्नलिखित ८ (आठ ) गोत्रों का पौषधशाला ... लेखा है । इन गोत्रों के कुल भी अधिकतर बाली, देसूरी के प्रगणों में ही बसते हैं।
१-उक्त गोत्रों की सूची उक्त पौषधशाला के भट्टारक कुलगुरु श्री रत्नचन्द्रजी के सौजन्य से प्राप्त हुई है। २-गोत्रों की सूची उक्त पौषधशाला के भट्टारक कुलगुरु मियाचन्दजी के सौजन्य से प्राप्त हुई है।