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________________ ":: प्राग्वाट-प्रदेश : १५ प्राग्वाट-प्रदेश वर्तमान सिरोही राज्य, पालनपुर-राज्य का उत्तर-पश्चिम भाग, गौड़वाड़ (गिरिवाड़-प्रान्त) तथा मेदपाटप्रदेश का कुम्भलगढ़ और पुर-मण्डल तक का भाग कभी प्राग्वाट-प्रदेश के नाम से रहा है। यह प्रदेश प्राग्वाट क्वों कहलाया-इस प्रश्न पर आज तक विचार ही नहीं किया गया और अगर किसी ने विचार किया भी तो वह अब तक प्रकाश में नहीं आया। ___ उक्त प्राग्वाट प्रदेश अर्बुदाचल का ठीक पूर्व भाग अर्थात् पूर्ववाट समझना चाहिए। यह भाग आज भी राजस्थान में उपजाऊ और अपेक्षाकृत घना बसा हुआ ही है । जैसा पूर्व लिखा जा चुका है कि सिंध-सौवीर की राजधानी वीतभयपत्तन का जब प्रकृति के भयंकर प्रकोप से ई० सन् पूर्व ५३४-३५ में विध्वंश हुआ था, वर्तमान् थरपार का प्रदेश, जिसमें आज सम्पूर्ण जैसलमेर का राज्य और जोधपुर, बीकानेर के राज्यों के रेगिस्तान-खण आते हैं, उस समय संभूत हुआ था । उस दुर्घटना से बचकर कई कुल थरपारकरप्रदेश को पार कर के अलीपर्वत की ओर बढ़े और वे भिन्नमाल नगरी को बसा कर वहाँ बस गये तथा भिन्नमाल के आस-पास के प्रवलीपर्वत के उपजाऊ पूर्ववाट में भी बसे । ओसियानगरी की स्थापना भी इन्हीं वर्षों में कुछ समय पश्चात् ही हुई थी। ___ शकसम्राट् डेरियस के पश्चात् ई० सन् पूर्व पाँचवीं शताब्दी में शकदेश में भारी राज्यक्रान्ति हुई और शफ लोगों का एक बहुत बड़ा दल शकदेश का त्याग करके भारत में प्रविष्ट हुआ। सिंध-सौवीर का कुछ भाग तो वैसे शक-सम्राट् डेरियस ने पहिले ही जीत लिया था और भारत में शकलोगों का आवागमन चालू ही था तथा सिंघ-सौरवीपति राजर्षि जैन-सम्राट् उदयन और उसके भाणेज नृपति केशिकुमार के पश्चात् सिंध-सौवीर का राम्प भी छिन्न-भिन्न और निर्बल हो गया था। ऐसा कोई नृपति भी नहीं था, जो बाहर से आने वाली आक्रमणकारी अथवा भारत में बसने की भावना रखने वाली ज्ञाति अथवा दल का सामना करता। फल यह हुआ कि इस बहुत बड़े शकदल का कुछ भाग तो सीमा प्रदेश में ही बस गया और कुछ भाग अबली-प्रदेश की समृद्धता और उपजाऊपन को श्रवण करके आगे बढ़ा और भिन्नमाल (श्रीमालपुर) अवलीपर्वत के समृद्ध एवं उपबाऊ पूर्ववाट में बसा । मुझको ऐसा लगता है कि उक्त कारणों से अवलीपर्वत का यह उपजाऊ पूर्वभाग अधिक ख्याति में भाषा बौर लोग इसको पूर्ववाड़ अथवा पूर्ववाट प्रदेश के नाम से ही पुकारने लगे और समझने लगे। अथवा जैसे शकस्तान के शक भारत में आकर बसने वाले शकपरिवारों को हिन्दी शक कहने समे थे, उस ही प्रकार भारत की सीमा पर बसा हुआ शक लोगों का भाग अपने से पूर्व में नवसंभूत थरपारकर-प्रदेश के पार, बसे हुये अपने शक लोग के निवासस्थान को पूर्ववाद या पूर्ववाट कहने लगे हो। ___ भगवान् महावीर के निर्वाण के लगभग ५७ (५२) वर्ष पश्चात् श्रीपार्श्वनाथ-सन्तानीय (उपकेशमच्छीय) प्राचार्य श्रीमत् स्वयंप्रभसूरि ने अपने बहुत बड़े शिष्यदल के साथ में इस अवलीपर्वत के उक्त पूर्वमाम अथवा पूर्वबाट की ओर विहार किया था। जैसा प्राग्वाटश्रावकवर्ग की उत्पत्ति के प्रकरण में लिखा गया है, उन्होंने
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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