________________
:: प्राग्वाट - इतिहास ::
६]
ई० सन् पूर्व ५२७ वर्ष में मोक्षगति को प्राप्त हुए ।
भगवान् की अहिंसात्मक क्रांति एवं जैनधर्म के प्रचार से नवीन बात यह हुई कि वर्णों में से जो भगवान् के अनुयायी बने उनका वर्णविहीन, ज्ञातिविहीन एक साधर्मीवर्ग बन गया जो श्रावक संघ' कहलाया । श्रावक संघ में ऊँच-नीच, राव-रंक का भेद नहीं रहा । इस श्रावक संघ की अलग स्थापना ने वर्णाश्रम श्रावक संघ की स्थापना की जड़ को एक बार मूल से हिला दिया । भगवान् महावीर के पश्चात् आने वाले जैनाचार्यों ने भी चारों वर्णों को प्रतिबोध दे-देकर श्रावक संघ की अति वृद्धि की । उनके प्रतिबोध से अनेक राजा, अनेक समूचे नगर ग्राम जैनधर्मानुयायी होकर श्रावक संघ में सम्मिलित हुये । क्योंकि ब्राह्मणवाद के मिथ्याचार एवं ब्राह्मणगुरुत्रों की निरंकुशता एवं हिंसात्मक प्रवृत्तियों से उनको श्रावक संघ में बचने का सुयोग मिला और सबके लिये धर्माधिकार सुलभ और समान हुआ ।
[ प्रथम
इस प्रकार महावीर के जन्म के पूर्व जहाँ वर्णसंस्था और धर्मसंस्था दो थीं, उनके समय में वहाँ श्रावकसंस्था एक अलग तीसरी और उद्भूत हो गई तथा जहाँ जैन और वैदिक दो मत थे, वहाँ जैन, वैदिक और बौद्ध तीन मत हो गये ।
भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् जैनाचार्यों द्वारा जैनधर्म का प्रसार करना
ง
1
भगवान् महावीर हिंसावाद के विरोध में पूर्ण सफल हुए और अनेक कष्ट- बाधायें झेल कर उन्होंने 'अहिंसापरमौ धर्मः' का झंडा खड़ा कर ही दिया और दयाधर्म का संदेश समस्त उत्तरी भारत में घर २ पहुंचा दिया । जैन धर्म का सुदृढ़ व्यापक एवं विस्तृत प्रचार तो उनके पश्चात् आने वाले जैनाचार्यों ने ही किया था। यहाँ यह कहना उचित है कि भगवान् गौतमबुद्ध ने अपना उपदेशक्षेत्र पूर्वी भारत चुना था और भगवान् महावीर ने मगध और उसके पश्चिमी भाग को; अतः दोनों महापुरुषों के निवाण के पश्चात् जैनधर्म उत्तर-पश्चिम भारत में अधिकतम रहा और बौद्ध मत प्रधानतः पूर्वी भारत में । दोनों मतों को पूर्ण राजाश्रय प्राप्त हुआ था । मगधसम्राटों की सत्ता न्यूनाधिक अंशों में सदा सर्वमान्य, सर्वोपरि एवं सार्वभौम रही है । मगध के प्रतापी सम्राट् श्रेणिक (बिम्बिसार), कूणिक (अजातशत्रु)
१- भगवान् महावीर के मोक्ष जाने के वर्ष ई० सन् पूर्व ५२७ के होने में तर्कसंगत शंका है। गौतमबुद्ध का निर्वाण ई० सन् पूर्व ४७७ वर्ष में हुआ। वे अस्सी (८०) वर्ष की आयु भोग कर मोक्ष सिधारे थे । इस प्रकार उनका जन्म ई० सन् पूर्व ५५७ ठहरता है। गौतम ने तीस वर्षं की वय में गृह त्याग किया था अर्थात् ई० सन् पूर्व ५२७ में । अजातशत्रु बुद्धनिर्वाण के ८ वर्ष पूर्व राजा बना था और उसके राज्यकाल में दोनों धर्म-प्रचार कर रहे थे। महावीर निर्वाण और गौतम का गृहत्याग अगर एक ही संवत् में हुये होते तो अजातशत्रु के राज्यकाल में दोनों कैसे प्रचार करते हुये विद्यमान मिलते १
२- श्रावक संघ की स्थापना नवीन नहीं थी। जब २ जैनतीर्थङ्करों ने जैनधर्म का प्रचार करना प्रारम्भ किया, उन्होंने प्रथम चतुर्विधश्रीसंघ की स्थापना की । साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इन चार वर्गों के वर्गीकरण को ही चतुर्विध-श्रीसंघ कहा जाता है ।