________________
:: चित्र-सूची ::
२१. देउलवाड़ा : पार्वतीयसुषुमा एवं वृजराशि के मध्य श्री पिसलहरवसहि एवं श्री खरतरवसहि के साथ अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहसहि का बाहिर देखाव । पृ० १८६ २२. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के रङ्गमण्डप के सोलह देवपुतलियोंवाले अद्भुत घूमट का भीतरी दृश्य । पृ० १८७ २३. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि का
अद्भुत कलामयी आलय | पृ० १६० २४. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के गूढमण्डप में संस्थापित श्रीमती राजिमती की अत्यन्त सुन्दर प्रतिमा । पृ० १८८ २५. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के नवचौकिया के एक मण्डप के घूमट का अद्भुत शिल्प कौशलमयी दृश्य और उसके बृहद् वलय में काचलाकृतियों की नौकों पर बनी हुई जिनचौवीशी का अद्भुत संयोजन | पृ० १८६ २६. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के रंगमण्डप के बाहर भ्रमती में नैऋत्य कोण के मण्डप में ६८ प्रकार का नृत्य-दृश्य । पृ० १८६ २७. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के रङ्गमण्डप के सुन्दर स्तंभ, नवचौकिया, उत्कृष्ट शिल्प के उदाहरणस्वरूप जगविश्रुत श्रालय और गूढ़मण्डप के द्वार का दृश्य । पृ० १६० २८. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि के सभामण्डप के घूमट की देवपुत्तलियों के नीचे नृत्य करती हुई गंधर्वो की अत्यन्त भावपूर्ण प्रतिमायें । पृ० १६०
२६. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की भ्रमती के दक्षिण पक्ष के प्रथम मण्डप की छत में कृष्ण के जन्म का यथाकथा दृश्य । पृ० १६० ३०. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
भ्रमती के दक्षिण पक्ष के मध्यवर्ती मण्डप की छत में श्री कृष्ण द्वारा की गई उनकी कुछ लीलाओं का दृश्य । पृ० १६०
३१. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की देवकुलिका मं० ६ के द्वितीय मण्डप (१६) में द्वारिकानगरी, गिरनारतीर्थ और समवशरण की रचनाओं का अद्भुत देखाव । पृ० १६२ ३२. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
देवकुलिका सं० ११ के द्वितीय मण्डप में नेमनाथ - वरातिथि का मनोहारी दृश्य । पृ० १६३ ३३. श्रीगिरनारपर्वत स्थ वस्तुपालक । पृ० १६४ ३४. श्री गिरनारपर्वतस्थ श्रीवस्तुपालटँक । पृ० १६६ ३५. नडूलाई : यशोभद्रसूरिद्वारा मंत्रशक्तिबलसमानीत
आदिनाथ बावन जिन प्रासाद | पृ० २०४ ३६. महाकवि श्रीपाल के भ्राता शोभित और उसका परिवार | पृ० २२३
10
३७. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की देवकुलिका सं० १६ में अश्वावबोध और समलीविहारतीर्थदृश्थ । उन दिनों में जहाज कैसे बनते थे, इससे समझा जा सकता है । पृ० २४१ ३८. पिण्डरवाटक में सं. धरणाशाह द्वारा जीर्णोद्धार
कृत प्राचीन महावीर - जिनप्रासाद । पृ० २६२ ३६. अजाहरी ग्राम में सं० धरणाशाह द्वारा जीर्णो
द्धारकृत महावीर - चावनजिनप्रासाद | पृ० २६२ ४०. पर्वतों के मध्य में बसे हुये नांदिया ग्राम में
सं० धरणाशाह द्वारा जीर्णोद्धारकृत प्राचीन श्री महावीर - बावन जिनप्रासाद । पृ० २६३ ४१. गोड़वाड़ (गिरिबाट) प्रदेश की माद्रीपर्वत की रम्य उपत्यका में सं० धरणाशाह द्वारा विनिर्मित नलिनीगुल्मविमान - त्रैलोक्यदीपक-धरणविहार राणकपुर तीर्थ नामक शिल्प-कलावतार चतुर्मुख-आदिनाथ - जिनप्रासाद । पृ० २६६