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:: प्राग्वाट-इतिहास:
४. लेखक : श्री दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' बी. ए. | इतिहास:१. हम्मीरपुर : राजमान्य महामंत्री सामंत द्वारा
जीर्णोद्धारकृत श्री अनन्य शिल्पकलावतार जिनप्रसाद का पार्वतीय सुषुमा के मध्य उसका
उत्तम शिल्पमण्डित आन्तर दृश्य । पृ० ५६ २. श्री शत्रुजयतीर्थस्थ श्री विमलवसहि । पृ० ७५ ३. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि के . निर्माता गूर्जरमहाबलाधिकारी विमलशाह की
हस्तिशाला में प्रतिष्ठित अश्वारूढमूर्ति । पृ० ८२ ४. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि की भ्रमती के उत्तर पक्ष के एक मण्डप में सरस्वतीदेवी की एक सुन्दर आकृति । एक ओर हाथ जोड़े हुये विमलशाह और दूसरी ओर गज लिये हुये
सूत्रधार हाथ जोड़े हुये दिखाये गये हैं। पृ० ८२ ५. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि का
बाहिर देखाव । पृ० ८३। ६. सर्वाङ्गसुन्दर अनन्य शिल्पकलावतार अर्बुदा
चलस्थ श्री विमलवसति.देलवाडा । प०८४। ७. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि के
नवचौकिया के एक मण्डप की छत में कल्पवृक्ष की अद्भुत शिल्पमयी आकृति । पृ० ८६ ८. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि के
पूर्व पक्ष की भ्रमती के मध्ववर्ती गुम्बज के
खंड में भरत-बाहुबली-युद्ध का दृश्य । पृ० ८७ ६. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि का
अद्भुत् शिल्पकलापूर्ण रङ्गमण्डप । पृ० ८८ १०. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि के
अद्भुत शिल्पकलापूर्ण रङ्गमण्डप के सोलह
देवीपुत्तलियों वाले घूमट का देखाव । पृ० ८८ ११. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि के
उत्तर पक्ष पर विनिर्मित देवकुलिकाओं की ।
हारमाला का एक प्रान्तर दृश्य । पृ० ८६ १२. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि की
दक्षिण पक्ष पर बनी हुई देवकुलिका सं० १० के प्रथम मण्डप की छत में श्री नेमिनाथ-चरित्र
का दृश्य । पृ० ६१ १३. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि की
दक्षिण पक्ष पर बनी हुई देवकुलिका सं० १२ के प्रथम मण्डप की छत में श्री शांतिनाथ
भगवान् के पूर्वभव का दृश्य । पृ० ६१ १४. अनन्य शिल्पकलावतार श्री विमलवसहि की
हस्तिशाला । प्रथम हस्ति पर महामंत्री नेढ़
और ततीय हस्ति पर मंत्री आनन्द की मर्तियां
विराजित हैं । पृ. ६७ १५. सर्वांगसुन्दर शिल्पकलावतार अर्बुदाचलस्थ
श्री लूणसिंहवसहि देलवाड़ा । पृ० १७१ । १६. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
हस्तिशाला का दृश्य । पृ० १७८ १७. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
हस्तिशाला में हस्तियों के मध्य में विनिर्मित
त्रिमंजिला सुन्दर समवशरण । पृ० १७८ । १८. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
हस्तिशाला में पुरुषों के खत्तकों के मध्य तथा श्री समवशरण के ठीक पीछे एक खत्तक में
सुन्दर परिकरसहित जिन-प्रतिमा । पृ. १७८ १६. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि
की हस्तिशाला में (उत्तर पक्ष से) प्रथम पांच खत्तकों में प्रतिष्ठित मंत्रीभ्राताओं की पूर्वज
प्रतिमायें। पृ० १७८ २०. अनन्य शिल्पकलावतार श्री लूणसिंहवसहि की
हस्तिशाला में अन्य पांच (छः से दस) खत्तकों में प्रतिष्ठित मंत्रीभ्राता तथा उनके पुत्रादि की प्रतिमायें । पृ० १७८