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::विषय सची:
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विषय
पृष्ठांक |
महान् विद्वान् देवबोधि का परास्त होना २११ मंत्री बाहड़ द्वारा विनिर्मित जिनमंदिर की। प्रतिष्ठा । सम्राट् के हृदय में देवसरि के
प्रति अपार श्रद्धा का परिचय " कर्णाटकीय वादीचक्रवर्ती कुमुदचन्द्र को देवसूरि की प्रतिष्ठा से ईर्ष्या और गूर्जरसम्राट् की राजसभा में वाद होने का निश्चय, देवसूरि की जय और उनकी विशालता- २१२
देवमूरि को युग-प्रधान-पद की प्राप्ति २१३ सविधि एवं शुद्धाचार का प्रवर्तन सम्राट् कुमारपाल का जालोर की कंचनगिरि पर कुमारपाल-विहार का बनवाना और उसको देवमूरि के पक्ष को अर्पित करना , वादीदेवसूरि की साहित्यिक सेवा और स्वर्गारोहण
२१४ बृहद्गच्छीय श्रीमद् धर्मघोषसरि वंश-परिचय और दीक्षा-महोत्सव , आपका शाकंभरी के सामंत को जैन बनाना और प्राचार्यपद की प्राप्ति आचार्य धर्मघोषसरि का विहार और धर्म । की उन्नति
डोणग्राम में चातुर्मास और स्वर्गवास , तपगच्छनायक श्रीमद् सोमप्रभसरि कुल-परिचय और गुरुवंश
२१६ समकालीन पुरुष और इनकी प्रतिष्ठा , श्री साहित्यक्षेत्र में हुये महाप्रभावक विद्वान् एवं । महाकविगण
कविकुलशिरोमणि श्रीमंत षड्भाषाकविचक्रवर्ती श्रीपाल, महाकवि सिद्धपाल, विजयपाल तथा श्रीपाल के गुणाढ्य भ्राता शोभित
विषय
पृष्ठांक गुर्जरसम्राटों का साहित्यप्रेम और महाकवि श्रीपाल की प्रतिष्ठा
२१७ अभिमानी देवबोधि और महाकवि श्रीपाल २१६ सम्राट् की राज्य-सभा में श्वेताम्बर और दिगम्बर शाखाओं में प्रचंडवाद और
श्रीपाल का उसमें यशस्वी भाग " महाकवि सिद्धपाल सिद्धपाल का गौरव और प्रभाव
२२१ सिद्धपाल और सोमप्रभाचार्य २२२ सिद्धपाल में एक अद्भुतगुण और उसकी
कवित्वशक्ति विजयपाल
२२३ महाववि श्रीपाल का भ्राता श्रे० शोभित , न्यायोपार्जित द्रव्य का सद्व्यय करके जैनवांगमय की सेवा करने वाले प्रा० ज्ञा० सद्गृहस्थश्रेष्ठि देशल , धीणाक
२२४ ,, मंडलिक
२२६ , वैल्लक और श्रेष्ठि वाजक
२२७
२२८ " राहड़ जगतसिंह
२३१ " रामदेव ठ० नाऊदेवी श्रेष्ठि धीना
, मुहुणा और पूना श्रा० सूहड़ादेवी भरत और उसका यशस्वी पौत्र पद्मसिंह और उसका परिवार
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२१५
" यशोदेव " जिह्वा
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२३३