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गुरु चिंतन है। सारांश- आत्मा केवल अनुमान से ही जाने, ऐसा वह ज्ञेय पदार्थ नहीं है। साधक को अनुमान के साथ आंशिक स्वसंवेदन ज्ञान प्रत्यक्ष होता है और वह बढ़कर सम्पूर्ण प्रत्यक्ष ऐसा केवलज्ञान होता है।
६. टीकार्थ-जिसके लिंग के द्वारा नहीं, किन्तु स्वभाव के द्वारा ग्रहण होता है वह अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा प्रत्यक्ष ज्ञाता है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- वर्तमान में परोक्ष ज्ञान होने पर भी मेरा स्वभाव प्रत्यक्ष ज्ञाता है। परज्ञेयों की अपेक्षा रहित, इन्द्रिय व मन के अवलम्बन रहित, स्वयं स्वयं को प्रत्यक्ष जाने ऐसा आत्मा का ज्ञाता स्वभाव है।
७. टीकार्थ- जिसके लिंग द्वारा अर्थात् उपयोग नामक लक्षण द्वारा ग्रहण नहीं है अर्थात् ज्ञेय पदार्थों का आलंबन नहीं है, वह अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा के बाह्य पदार्थों का आलंबन वाला ज्ञान नहीं है - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- उपयोग को ज्ञेय पदार्थों का आलंबन नहीं है। चैतन्य लक्षण उपयोग स्व-आत्मा का अवलम्बन करता है। पर का अवलम्बन लेवे ऐसा उपयोग का स्वभाव नहीं है।
८. टीकार्थ- जो लिंग को अर्थात् उपयोग नामक लक्षण को ग्रहण नहीं करता अर्थात् स्वयं (कहीं बाहर से) नहीं लाता, सो अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा जो कहीं से नहीं लाया जाता - ऐसे ज्ञानवाला है ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- आत्मा उपयोग को कहीं बाहर से नहीं लाता है। ज्ञान उपयोग की निर्मलता एवं वृद्धि बाह्य किसी भी पदार्थों में से नहीं आती है, वह तो क्रमश: अंतर ज्ञानस्वभाव में से आती है।
९. टीकार्थ-जिसे लिंग का अर्थात् उपयोग नामक लक्षण का ग्रहण अर्थात् पर से हरण नहीं हो सकता (अन्य से नहीं ले जाया जा सकता) सो अलिंगग्रहण है। इसप्रकार आत्मा के ज्ञान का हरण नहीं किया जा सकता - ऐसे अर्थ की प्राप्ति होती है। सारांश- कोई उपयोगरूप धन का हरण (चोरी) नहीं कर सकता। पर से जिसका घात न हो, स्वस्वभाव से