SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुचिंतन द्रव्यार्थिकनय, पर्यायार्थिकनय और द्रव्य - पर्यायनयों में अन्तर है। द्रव्यार्थिकनय का विषय सम्पूर्ण सामान्य स्वभाव रूप अभेद धर्म है जबकि द्रव्यनय अनन्तधर्मों में से एक धर्म है। इसीप्रकार पर्यायार्थिकनय का विषय वस्तु का विशेष स्वभाव है, जबकि पर्याय धर्म भेदरूप रहने की विशिष्ट योग्यता है। द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक के विषय में प्रमाण के विषयभूत सम्पूर्ण वस्तु है, जबकि द्रव्यनय और पर्यायनय का विषय मात्र एक-एक धर्म है। ये दोनों नय वस्तु की अभेद तथा भेदरूप एक-एक योग्यता को बताते है। जरा ध्यान दीजिए कि अभेद शब्द कितने अर्थों में प्रयुक्त होता है ? १. अभेद अनुभूति - जहाँ ध्यान ध्याता ध्येय का भी विकल्प नहीं है। 31 २. द्रव्यार्थिक या शुद्धनय का विषय जिसमें भेदों को गौण करके अभेद वस्तु को विषय बनाया जाता है। - ३. द्रव्यनय का विषय समस्त भेदों में व्याप्त रहने की एक योग्यता रूप धर्म । अतः अभेद शब्द के द्वारा कहाँ कौन-सा वाच्य बताना है इसका ध्यान रखना चाहिए ? (३-५) अस्तित्वनय, नास्तित्वनय एवं अस्तित्वनास्तित्वनय " वह आत्मद्रव्य अस्तित्वनय से लोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में स्थित, संधानदशा में रहे हुए, लक्ष्योन्मुख बाण की भाँति स्वद्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा अस्तित्ववाला है, नास्तित्वनय से अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में नहीं स्थित, संधान दशा में न रहे हुए, अलक्ष्योन्मुख उसी बाण की भाँति परद्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव की अपेक्षा नास्तित्ववाला है एवं
SR No.007255
Book TitleGuru Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMumukshuz of North America
PublisherMumukshuz of North America
Publication Year2013
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy