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________________ कखणकरणकलकलाकृष्ण मृत्यु महोत्सब कलकल • जीवन की निरर्थकता और मृत्यु की निश्चितता का यथार्थ ख्याल । रखने के लिये इंसान को मृत्यु की उदासीनता बढाये ऐसे पहलूओं को देखते रहना चाहिये। इंसान को आज का दिन अपना अंतिम दिन है ऐसा मानकर ही जीना चाहिये। अपनी ऐसी घटना के डर से नहीं परंतु ।। उसके आने तक और उसके साथ संघर्ष होने तक अपना कार्य करते । रहना चाहिये और अपना फर्ज अदा करते रहना चाहिये। मृत्यु के डर बिना जीवन जीते रहना पकी उम्र तक आनंदपूर्वक जीते , रहने का एकमात्र रास्ता है। अगर मृत्यु घृणाजनक और भयजनक । बनती है, तो उसका कारण हमारी ही आदतें एवं विकृतियाँ है। अंधेरे कक्ष में अपने शव के पास बैठकर विलाप करते स्वजन और मित्रों की कल्पना मृत्यु को भयजनक बनाते हैं। हमारे प्राचीन कवियों ने नींद और मृत्यु को जुड़वा भाइयों की तरह गिनाया है। अगर हम मृत्यु के जुड़वा भाई को नित्य एक मित्र गिन कर बुलाते हों तो हमें । मौत से भी क्यों घबराना चाहिये ? मृत्यु जीवन जितनी ही निश्चित है। दोनों अपनी जानकारी के बिना आते हैं। किसी को नींद या मृत्यु के आगमन के निश्चित पल का ज्ञान नहीं होता, तो फिर मृत्यु से इतना क्यों भयभीत होना? हे मृत्यु ! तू आ, और मुझे सायप्रस के उदास पेड़ के नीचे दफना दे, हे मेरी सांस, तू चली जा, मुझे सुंदर, क्रूर युवती ने मार डाला है। मेरे सफेद कफन को तैयार करो! मेरी मृत्यु के पाठ की अदाकारी में, कोई मेरी बराबरी नहीं कर सकता। -शेक्सपियर इस जगत में मृत्यु और कर के सिवा कुछ निश्चित नहीं है। -बेन्जामिन फ्रैंकलिन हे छोटी सी मोमबत्ती ! तू बुझ जा। जीवन मात्र एक हिलती-डुलती परछाँई है, और एक निर्बल अदाकार है, जो तख्त पर अपना एक घंटा गर्व से बिताकर खो जाता है। जीवन एक मूर्ख के द्वारा कही गई कहानी है जिसमें शोरगुल और आवेश है, परंतु उसका कोई सार नहीं है। - शेक्सपियर Log-PG_0GPG२७- २ ३७DGPG.PGPGIGIG ཚེ ཆེ་་་་་་ ཚེས་་་་་་་་་་་་་་ ཚེས་་་༩ ཚེས་༡ ཚེ་ཀ6 ཚེ་་་་ཚེས་་་ ཚེས་་་་་་་ ཚེས་་་་་་་་ ཚེ་ ” ཚེས་༡ ཚེས་་་་་་་་་་་་་་ ཚེས་་་ ཚེ་ཆཚེ་་་་་་་་་་་་་ མི་
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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