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________________ छल कर कष्टकरण कब मृत्यु महोत्सव कलकल कलकलाकाराला समाधिमरण पाठ (मृत्युमहोत्सव पाठ) नरेन्द्र छन्द बन्दौं श्री अरहंत परम गुरु, जो सबको सुखदाई । इस जग में दुख जो मैं भुगते, सो तुम जानो राई॥ अब मैं अरज करूँ प्रभु तुमसे, कर समाधि उर माँहीं । अन्त समय में यह वर मागें, सो दीजै जगराई ॥१॥ भव-भव में तनधार नये मैं, भव-भव शुभ संग पायो । भव-भव में नृपरिद्धि लई मैं, मात-पिता सुत थायो॥ भव-भव में तन पुरुष तनों धर, नारी हूँ तन लीनों । भव-भव में मैं हुवो नपुंसक, आतम गुण नहिं चीनों ॥२॥ भव-भव में सुर पदवी पाई, ताके सुख अति भोगे । भव-भव में गति नरकतनी धर, दुख पायो विधि योगे॥ भव-भव में तिर्यंच योनि धर, पाये दुख अति भारी । भव-भव में साधर्मीजन को, संग मिल्यो हितकारी ॥३॥ भव-भव में जिन पूजन कीनी, दान सुपात्रहिं दीनो । भव-भव में मैं समवसरण में, देख्यो जिनगुण भीनो॥ एती वस्तु मिली भव-भव में, सम्यक गुण नहिं पायो । ना समाधियुत मरण कियो मैं, तातै जग भरमायो॥४॥ काल अनादि भयो जग भ्रमते, सदा कुमरणहिं कीनो । एक बार हू सम्यकयुत मैं, निज आतम नहिं चीनो॥ जो निज पर को ज्ञान होय तो, मरण समय दुख काई। देह विनाशी मैं निजभासी, ज्योति स्वरूप सदाई॥५॥ विषय कषायनि के वश होकर, देह आपनो जान्यो । कर मिथ्या सरधान हिये विच, आतम नाहि पिछ न्यो॥ यो कलेश हिय धार मरणकर, चारों गति भरमायो । सम्यकदर्शन-ज्ञान-चरन ये, हिरदे में नहिं लायो॥६॥ अब या अरज करूँ प्रभु सुनिये, मरण समय यह मांगों । रोग जनित पीड़ा मत हूवो, अरु कषाय मत जागो॥ ये मुझ मरण समय दुखदाता, इन हर साता कीजै । जो समाधियुत मरण होय मुझ, अरु मिथ्यागद छीजै ॥७॥
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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