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________________ कलकल कालणाकालमा मृत्यु महोत्सव कलाकार कलाकार कल्यू जीर्णं देहादिकं सर्वं, नूतनं जायते यतः । स मृत्युः किं न मोदाय, सतां सातोत्थितियथा ॥८॥ अन्वयार्थ (यतः) जिससे (जीर्णं देहादिकं) जीर्ण देहादि (सर्व) सर्व (नूतनं) नवीन (जायते) हो जाते हैं, (सः मृत्युः) वह मृत्यु (किं) क्या (सतां) सत्पुरुषों के (मोदाय) हर्ष के लिए (न) न होगी, (यथा) जिस प्रकार (सातोत्थितिः) पुण्य का उदय होता है ? जीर्ण-शीर्ण देहादिक सारे, जिससे नूतन हो जाते, उसी मृत्यु से मोही प्राणी, ना जाने क्यूँ घबराते । पुण्य-कर्म का उदय मनुज को, ज्यों प्रमोद से भरता है, देह-छूटना सत्पुरुषों को, त्यों आनन्दित करता है। अन्तर्ध्वनि : जिस मृत्यु से वृद्धावस्था द्वारा जर्जरित शरीर । आदि यहीं छूट जाते हैं और नवीन सुन्दर देहादि प्राप्त होते हैं, क्या वह मृत्यु, पुण्योदय की भाँति, सज्जनों के मन को आनन्दित नहीं करेगी? अवश्य करेगी। Essence : As good luck delights gentlemen, would not Death too be glorious for them, by the e grace of which the rotten old body etc. are replaced I by fresh ones?
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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