SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [श्री उपांग-प्रकीर्णक सूत्राद्यकारादिः] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत "श्री उपांगप्रकीर्णकसूत्राद्यकारादि" के नामसे सन १९४८ (विक्रम संवत २००५) में 'श्री ऋषभदेव केशरिमल श्वेताम्बर संस्था' द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | * पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'औपपातिक' आदि १२ उपांगसूत्रो तथा 'चतुःशरण' आदि १० प्रकीर्णकसूत्रो के मूलसूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा आदि थे उन सभी सूत्रआदि के 'अकारादि' क्रमांकन किये थे | वे 'उपांगसूत्र तथा प्रकीर्णकसूत्र के अकारादि को इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है। अर्थात् १२ उपांगसूत्रो एवं १० प्रकीर्णकसूत्रो के सूत्रादि-अकारादि के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है। पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह अंगसूत्रो और नन्दी आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्रादि-अकारादि की भी रचना, संपादन और प्रकाशन किया है। हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी. ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसे वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | पूज्यपाद आगमोद्धारकरी ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है। * अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ..... मुनि दीपरत्नसागर.
SR No.007211
Book TitleUpaang Prakirnak Sootra Ggaathaaadi Akaaraadi Kram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages79
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_index
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy