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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[-]
दीप
अनुक्रम H
श्री आवश्यक मलय० वृत्तौ
उपोद्घाते
॥३९७॥
in Educatio
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-३ अध्ययनं [-], निर्युक्तिः [७७३-७७६ ], वि०भा० गाथा [-], भाष्यं [ १३७], मूलं [- / गाथा-] दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
लज्जितो तं बहर, मग्गतो मम सुहाई पेच्छंति, एवं तेण उवसग्गो उट्टितोत्तिकाऊण वूढं पच्छा आगतो तहेब, ताहे आयरिया भणति - किं खंता ! इमं १, सो भणइ उवसग्गो उट्टितो, आयरिया भणंति-आणेह साडयं, ताहे भणइ-किं थ साडएणं, दिडुं जं दट्टबं, चोलपट्टगो चैव हवड, एवं ता सो चोलपट्टयं गेण्हात्रिओ, पच्छा भिक्खं न हिंडर, आयरिया चिंतंति- एस भिक्खं न हिंडर, को जाणइ कयाइ किंची भवइ ?, तत्थ एकलओ किं काहिइ ?, अवि एसो निजरं पावेयचो, तो तहा कीरज जहा एस भिक्खं हिंडइ, एवं आयवेयावचं पच्छा परवेयावचंपि काहिइ, एवं चिंतित्ता | तत्तोऽणेण सबै साहुणो अप्पसागारियं भणिया-अहं वच्चामि तुझे एकहया समुद्दिसेज्जाह पुरतो खंतस्स, तेहिं पडिस्सुयं ततो संतस्स पुरतो आयरिया भणति - तुम्हें खंतरस सम्मं वट्टेजह, अहं वच्चामि गामं, एवं गया आयरिया, तेऽवि साहुणो भिक्खं हिंडिऊण सबै एकलया समुद्दिसंति, सो चिंतेइ-ममेस दाहिइ, इमो दाहिइ, एकोऽवि तस्स न देइ, अण्णो दाहिइ एस वराओ किं लभइ १, एवं तस्स न केण्इ किंचि दिनं, ताहे आसुरुतो न किंचि आलवति, चिंतेइएउ कलं ताव मम पुत्तो तो पेक्खह एए जं पावेमि, ताहे विश्यदिवसे आगया आयरिया, ताहे ते भति-संता ! किह ते साहूहिं वट्टियं १, ताहे सो भणइ-पुसा ! जइ तुमं न होंतो तो एकंपि दिवसं न जीवतो, एएवि जे अण्णे मम पुत्ता नलुगा य तेऽवि न किंचि देति, ताहे ते आयरिएण समक्खं अंबाडिया, तेऽवि अब्भुवगया, ताहे आयरिया भणंति-आणेह भावणाणि, जह अप्पणी खंतस्स पारणयं आणेमि, ताहे सो खंतो भइ-किं इह मम पुत्तो हिंडिहिइ ?, लोगप्पणासे न कयाइ हिंडियपुषो, भणइ अहं चैव हिंडामि, ताहे सो अप्पणा खंतो निग्गतो, सो य पुण लद्धिसं
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आर्यरक्षितसे वृद्धप्रज्यादि
॥३९७ ॥