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आगम
(४०)
"आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः ) भाग-३ अध्ययनं -, नियुक्ति: [७६६], विभा गाथा [-], भाष्यं [१३७...], मूलं - /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
श्रीआव-15 उलेणीए जो जंभगेहिं आणक्खिऊण धुअमहिओ । अक्खीणमहाणसि सीहगिरिपसंसियं वंदे ॥ ७६६॥ श्रीवज्रवृत्त इयक मल- उज्जयिन्यां यो जृम्भकर्देव विशेषः 'आणक्खिऊण'त्ति परीक्ष्य 'स्तुतमहितः स्तुतो वास्तवेन महितो विद्यादानेन, यः वृत्ती अक्षीणमहानसिकं सीहगिरिप्रशंसितं वंदे इति गाधाक्षरार्थः ॥ भावार्थः कथानकादवसेयः, तच्छेदम्उपोद्घाते F पुणरवि अन्नया जेडमासे सण्णाभूमि गयं घयपुण्णेहिं निमंतंति, तत्थवि दवाइउवओगो, निच्छियं, तत्थ से नहगामिणी 8
विज्जा दिण्णा, एवं सो विहरइ । ताणि य पयाणुसारिगहियाणि एक्कारस अंगाणि संजयाणं मूले घिरतराणि जायाणि, ॥३८८॥ तत्थवि जो अज्झाइ रवरिलं पुवगयं तंपि सर्व गिण्हइ, एवं तेण बहुयं गहिय, जाहे वुच्चइ-पढाहि, ताहे सो एंत
हगंपि कुईतो अच्छइ अण्णं सुणतो, अन्नया आयरिया मज्झण्हे साहसु भिक्खं निग्गएसु सण्णाभूमि गया, वइरसामीवि
पडिस्सयवालो अच्छइ, सो तेसिं साहूणं वेंटियातो मंडलीए रइत्ता मज्झे अप्पणा ठाउं वायणं देइ, ताहे परिवाडीए
एक्कारसवि अंगाणि वाएड पुवगर्य च, ताव आयरिया आगया चिंतंति-लहुं साहू आगया, सुणइ सदं मेघोघरसिया दूबहिया सुणता अच्छति, नायं जहा वइरोत्ति, पच्छा ओसरिऊण पुणो सद्दपडियं निसीहियं करेंति, मा से संका भवि
स्सा. ताहे तेण तुरियं वेंटियाओ सहाणे ठवियातो, निग्गतृण दंडयं गेण्हा पाए य पमनाइ, ताहे आयरिया चिंतेंति-14 मा एवं साहू परिभविस्संति तो जाणावेमि, ताहे रत्तिं आयरिया साहू आपुच्छंति-जहा अमुगं गार्म बच्चामो, तत्था दो तिन्नि वा दिवसे अच्छिस्सामो, तत्व जोगपडिवनगा भणंति-अम्हं को वाणारिओ, आयरिया भणंति-वइरोत्ति, तेहिं विणीपहिं वहति पहिसुर्य, वायरिया गया, साइवोऽवि पडिलेहिचा कालनिवेयणादि वइरस्स करेंति, ततो सर्वमि है
दीप अनुक्रम
॥३८॥
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