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आगम
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"आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) भाग-२ अध्ययनं न, नियुक्ति: [५१६-५१८], वि०भा०गाथा ], भाष्यं [११४...], मूलं [- /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
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चरिते
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दीप अनुक्रम
उपोद्धात- रणो ईसरस्स वा धूया एसा मा आवई पावउत्ति जत्तियं सो भणइ तत्तिएण मोडेण गहिया, वरं तेण समं गमणागमणं चन्दनानियुक्तो मे होहिइत्ति, नीया नियधरं, कासि तुमति पुग्छिया न साहइ, पच्छा तेण धूयत्ति गहिया, एवं सण्णाणिया, मूलाविन कौशाश्रीवीर- तेण भणिया-एसा तुम्भं धूया, एवं सा तत्थ जहा नियघरे तहा सुहंसुहेणं अच्छइ, तीएवि सो सदासपरियणो लोगो कम्न्यां पार
|सीलेण विणएण य सबो अप्पणिज्जो कतो, ताहे ताणि सवाणि भणंति-अहो इमा सीलचंदणत्ति, ताहे से विइयपि नाम: है कयं चंदणत्ति, एवं कालो बच्चाइ, ततो ताए परिणीए अवमाणो जातो मच्छरिजइ य, को जाणइ कयाइ एस एवं पडि
बजे जा! ताहे अहं घरस्स असामिणी भविस्सामि, तीसे वाला अतीव दीहा रमणिज्जा किण्हा य, सो सेट्ठी मज्झण्हं जण|विरहिए आगतो जाव नस्थि कोऽवि जो पाए पक्खालेइ, ताहे सा पाणियं गहाय निग्गया, तेण वारिया, सा मड्डाए घोवि पबत्ता, ताए धोवंतीए वाला बद्धेल्लगा छुट्टा, मा चिक्खले पडिहिंतित्ति तस्स सेठिस्स हत्थे लीलाकट्ठ तेण| धरिया बद्धा य, मूला य ओलोयणगया पेच्छद, तीए णायं-विणहूँ कर्ज, जइ एयं कहवि परिणेइ तो मम एस णत्थि, जाव तरुणतो वाही ताव तिगिच्छामि, सेष्टुिमि विणिग्गए तीए पहावियं वाहरावित्ता सा चंदणा बोडाविता नियलेहि यद
बद्धा पिट्टिया य, वारियतो अणाए परियणो-जो साहइ वाणियस्स सो मे णत्थि, सा परे छोण तस्स घरस्स दारं दिन्नं पतालयं च, सो सेट्ठी आगतो पुच्छइ-कहिं चंदणा, न कोइ साहइ भएण, सो जाणंइ-नूणं रमइ उपरि वा चिटइ, एवं ॥२९५॥
रतिपि पुच्छिया, जाणइ-सा नूणं सुत्ता, बिइयदिवसेवि न दिट्ठा, तइयदिवसे घणं पुच्छइ, साहेह मा मे मारेह, ततो है। धेरदासी एका चिंतेइ-किं मम जीविएण?, सा जीवउ वराई, ताए कहियं-अमुयघरे, तेण उग्घाडिया दारा, पेच्छइ छुहाहयं ।
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