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आगम
(४०)
"आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) भाग-२ अध्ययनं H, नियुक्ति: [४९८-५०१], वि०भा०गाथा H], भाष्यं [११४...], मूलं [-/गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सत्रांक
णिया सुंडपहिं दंतेहिं विधइ फालेइ य, पच्छा काइएण सिंचइ, चलणेहिं मलइ १० जाहे न सका ताहे पिसायरूवं|| विउबइ, तेण उवसग्गं करेइ ११ जाहे न सक्कइ ताहे वग्घरवं करेइ, सो दादाहि नक्खेहिं फालेइ, खारकाइयाए सिंचेइ १२ जाहे एवमवि न सकइ ताहे सिद्धत्थरायरूवं विउवा, सो कलुणाणि विलवइ, एहि पुत्तगा! उज्झाहि । एमाइविभासा १३ ततो तिसलारूवं विउदइ, तत्थवि सा चेव विभासा १४ ततो जाहे एवमवि न सका ताहे सूर्य विउबड़, किह !, सो ततो खंधवारं विउबइ, सो परिपेरंतेसु आवासितो, तत्थ सूयो पत्थरे अलभंतो दोपहवि पायाण मज्झे अग्गिा जालित्ता पायाणं उरि उक्सलियं काउं पहउमारद्धो १५ जाहे एएणवि न सकइ ताहे पकणं विउवइ, सो पकणो ताणि । |पंजरगाणि वाहासु गले कण्णेसु य ओलयइ, ते सउणगा भयवंतं तुडेहिं खायतिं विधति सन्नं कायंचवोसिरंति १६ ततो, खरवायं विउचति, जेण सको मंदरोऽवि चालेउ, न पुण सामी चलइ, तेण आगासे उक्खिवित्ता उक्खिविचा पाडेइ १७ पच्छा कलंकलियावार्य विउवा, तेण जहा चक्काइद्धतो नंदिआवत्ते वा तहा भमाडिजाइ १८ जाहे एवमवि न सका ताहे|
कालचकं विउबइ, तं विउविऊण ऊहुं गगणतलं गंतूण एचाहे मारेमित्ति मुयए वजसंनिभं, मंदरंपि चूरेजा, तेण पहारेण है भयवं ताव नियुडो जाव अग्गनहा हत्थाणं १९ जाहे तेणवि न सका ताहे चिंतह-न सफो एस मारिति अणुलोमे
उपसग्गे करेमि, ताहे पभायं विधइ, लोगो सघो चंकमिडं पयत्तो, भणइ य-देवज्जगा! अजवि अच्छसि ?, भयवं
नाणेण जाणाइ जहा न ताव पभाइ, ततो दिवं देविहि दंसेइ, भणड य विमाणगतो-तद्रोमि तम भयवं। किं देमिर हे सगं वा ते सरीरं नेमि तिमिवि लोए तुझ पाएसु पाडेमि । अन्ने भणति-दिवं देविहिं देसित्ता मणोरमसहरू
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दीप अनुक्रम
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