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________________ जैन शतक ७७ • १७. डॉ. रामस्वरूप लिखते हैं - "जैन शतक' की भाषा साफ सुथरी और मधुर साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें कहींकहीं पर यार, माफिक, दगा आदि प्रचलित सुबोध विदेशी शब्द भी दिखाई देते हैं। कुछ पदों में समप्पै, थप्पै, रुच्चै, मुच्चै आदि प्राकृताभास शब्दों का भी प्रयोग दिखाई देता है। कुछ रूढ़ियाँ एवं लोकोक्तियाँ भी प्रयुक्त की गई हैं।" १८. आध्यात्मिक विद्वान् डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल लिखते हैं - __ "भूधरदासजी जिन-अध्यात्म परम्परा के प्रतिष्ठित विद्वान् और वैरागी प्रकृति के सशक्त कवि थे। महाकवि भूधरदासजी का सम्पूर्ण पद्य साहित्य भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से पूर्णतः समृद्ध है।" १९. डॉ. नरेन्द्रकुमार शास्त्री अपने शोध-प्रबन्ध में लिखते हैं - ___ "उनका जैनकवियों और विद्वानों में अपना विशिष्ट स्थान है। उन्होंने रीतिकालीन परिवेश से अपने आपको सर्वथा पृथक रखकर धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक काव्य का सृजन किया और रीतिकालीन शृंगारी काव्य की आलोचना की!१९" २०. श्री कमलचन्द जैन लिखते हैं - __ "कविवर ने 'जैन शतक' में अनुभवपरक, वैराग्यप्रेरक व विविध आध्यात्मिक कवित्तों की रचना करके. मानव-मस्तिष्क को आलोकित किया है।" १७. हिन्दी में नीतिकाव्य का विकास, पृष्ठ ५०० १८. महाकवि भूधरदास : एक समालोचनात्मक अध्ययन, प्रस्तावना, पृष्ठ ५-६ १९. महाकवि भूधरदास : एक समालोचनात्मक अध्ययन, पृष्ठ ४३७ . २०. जैन शतक (मुमुक्षु मंडल, अलवर से प्रकाशित, १९८७ ई.), पृष्ठ १
SR No.007200
Book TitleJain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Mahakavi, Virsagar Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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