________________
जैन शतक
३६. एक-एक व्यसन का सेवन करने वालों के नाम व फल
(छप्पय) प्रथम पांडवा भूप खेलि जूआ सब खोयो। मांस खाय बक राय पाय विपदा बहु रोयौ। विन जानें मदपानजोग जादौगन दझे।
चारुदत्त दुख सह्यौ' वेसवा-विसन अरुझे। नृप बह्मदत्त आखेट सौं, द्विज शिवभूति अदत्तरति। पर-रमनि राचि रावन गयौ, सातौं सेवत कौन गति॥६१॥
पांडवों के राजा युधिष्ठिर ने जुआ नामक प्रथम व्यसन के सेवन से सब कुछ खो दिया, राजा बक ने मांस खाकर बहुत कष्ट उठाये, यादव बिना जाने मद्यपान कर जल मरे, चारुदत्त ने वेश्याव्यसन में फंसकर बहुत दुःख भोगे, राजा ब्रह्मदत्त (चक्रवर्ती) शिकार के कारण नरक गया, चोरी के कारण - धरोहर के प्रति नियत खराब कर लेने के कारण - शिवभूति ब्राह्मण ने बहुत दुःख सहा, और रावण परस्त्री में आसक्त होकर नरक गया।
अहो ! जब एक-एक व्यसन का सेवन करने वालों की ही यह दुर्दशा हुई, तो जो सातों का सेवन करते हैं उनकी क्या दुर्दशा होगी?
विशेष :-प्रस्तुत छन्द में कवि ने सातों व्यसनों के दृष्टान्तस्वरूप क्रमश: सात कथा-प्रसंगों की ओर संकेत किया है, जिनकी पूर्ण कथा प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में प्राप्त होती है। अतिसंक्षेप में वे इसप्रकार हैं -
१. जुआ : इसमें महाराजा युधिष्ठिर की कथा सुप्रसिद्ध है । एक बार युधिष्ठिर ने कौरवों के साथ जुआ खेलते हुए अपना सब-कुछ दाव पर लगा दिया था और पराजित होकर उन्हें राज्य छोड़कर वन में जाना पड़ा था। वन में उन्होंने अपार दु:ख सहन किये।
२. मांस-भक्षण : मनोहर देश के कुशाग्र नगर में एक भूपाल नाम का धर्मात्मा राजा राज्य करता था। उसने नगर में जीव-हिंसा पर प्रतिबंध घोषित कर रखा था। किन्तु उसका अपना पुत्र बक ही बड़ा मांस-लोलुपी था। वह मांस के बिना नहीं रह सकता था, अत: उसने रसोइये को धनादि का लालच देकर अपने लिए मांसाहार का प्रबन्ध कर लिया। एक दिन रसोइये को किसी भी पशु-पक्षी
१. पाठान्तर : सहे।