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प्रकाशकीय महाकवि भूधरदासजी द्वारा रचित 'जैन शतक' का यह तृतीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
महाकवि भूधरदासजी हिन्दी के जैन कवियों में अग्रगण्य हैं । जैन शतक देखने में छोटी कृति प्रतीत होती है पर कवि ने मानों गागर में सागर भर दिया है। प्रस्तुत कृति में 107 कवित्त, दोहे, सवैये और छप्पय हैं । भाषा-शैली की दृष्टि से काव्य रचना बेजोड़ है।
प्रस्तुत कृति का सम्पादन एवं अनुवाद कार्य श्री टोडरमल दि. जैन सि. महाविद्यालय के भू.पू. छात्र डॉ. वीरसागर जैन, व्याख्याता एवं अध्यक्ष, जैन दर्शन विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली द्वारा किया गया है। उन्होंने सम्पादन एवं अनुवाद करने में अत्यधिक श्रम किया है, इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। ___ कृति को आकर्षक कलेवर में प्रस्तुत करने का श्रेय प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल को जाता है, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं । मुद्रण कार्य के लिए जयपुर प्रिण्टर्स, जयपुर के पार्टनर श्री प्रमोदकुमार जैन का सहयोग भी सराहनीय है। पुस्तक की कीमत कम करने में जिन महानुभावों ने अपना आर्थिक सहयोग दिया है वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। आप सभी इस कृति के माध्यम से अपने भव का अभाव करें, इसी कामना के साथ
महामंत्री
श्री दिगम्बर जैन मुमुक्षु मण्डल
महामंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट .. . जयपुर