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________________ अणुव्रत : संयम साधना का शुभारंभ जैन संस्कृति में व्रतों की अवधारणा अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। यहाँ पर व्रत को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। एक है 'अणुव्रत' और दूसरा है 'महाव्रत'। अणुव्रत का अर्थ है- महाव्रत का आंशिक रूप से पालन या एकदेश पालन। चूँकि गृहस्थ जीवन में पूर्ण रूप से महाव्रतों का पालन संभव नहीं है, अतः उन्हीं महाव्रतों की बातों का जितनी शक्ति हो, उतना पालन करके गृहस्थ जीवन में साधना की जा सकती है। ये पाँच महाव्रत हैं (1) अहिंसा (2) सत्य (3) अचौर्य (4) ब्रह्मचर्य (5) अपरिग्रह पाँच पाप व्यक्ति अपने जीवन में पाँच प्रकार के पाप प्रमुख रूप से करता है- (1) हिंसा, (2) झूठ, (3) चोरी, (4) कुशील तथा (5) परिग्रह। इन्हीं पाँच पापों के निवृत्ति स्वरूप पाँच व्रतों की चर्चा की गई है। जब गृहस्थ इन पाँच पापों को यथाशक्ति छोड़ता है तब वह पाँचों अणुव्रतों का पालन करता है और जब वीतरागी साधु इन्हीं पाँच पापों को पूर्ण रूप से छोड़ते हैं तब वे महाव्रती कहलाते हैं। श्रावक जब हम गृहस्थ अवस्था में रहते हैं और अणुव्रतों का पालन करते हैं तब 'श्रावक' कहलाते हैं। श्रावक शब्द तीन अक्षरों के योग से बना है- 'श्र', 'व', और 'क'; इसमें 'श्र' श्रद्धा का, 'व' विवेक का तथा 'क' कर्तव्य का प्रतीक है। अर्थात् जो श्रद्धालु और विवेकी होने के साथ-साथ कर्तव्यनिष्ठ हो, वह 'श्रावक' कहलाता है। श्रावक को अणुव्रती, देशव्रती, सागार तथा उपासक आदि संज्ञाओं द्वारा भी पुकारा जाता है। पाँच अणुव्रत (1) अहिंसाणुव्रत-हिंसा के स्थूल त्याग को अहिंसाणुव्रत कहते हैं। अपने फ़ायदे के लिए किसी भी जीव का, चाहे वह मनुष्य हो अथवा पशु; मन, वचन और काय से दिल दुःखाना हिंसा है तथा प्रमाद के कारण किसी के जीवन को छीन लेना महाहिंसा है। शास्त्रों में स्थूल रूप से चार प्रकार की हिंसा का वर्णन है (i) आरंभी हिंसा- घर की सफ़ाई इत्यादि कार्य करने पर बचाने की लाख कोशिश करने पर भी जो छोटे-छोटे जीव मर जाते हैं, उसे आरंभी हिंसा कहते हैं। (ii) उद्योगी हिंसा- आजीविका अर्जित करने के लिए कोई कृषि आदि अहिंसक कार्य करते समय बहुत बचाने पर भी जो जीवों की हिंसा हो जाती है, वह उद्योगी हिंसा है। । जैन धर्म-एक झलक
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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