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________________ आगम विलुप्त हो चुके हैं। श्वेतांबरों ने माना कि बारहवाँ दृष्टिवाद अंग वाचनाओं के समय किसी को याद न रहने के कारण उनकी स्मृति से छूट गया, अतः वे उसे संकलित नहीं कर पाए। जबकि दिगंबरों में इसी के कुछ अंश षट्खंडागम और कसायपाहुड़ के रूप में आज भी सुरक्षित हैं। श्वेतांबरों में मान्य सभी आगमों की भाषा अर्धमागधी प्राकृत है। जबकि दिगंबर परंपरा में आगमज्ञान के आधार पर उपलब्ध आगम साहित्य शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित है। उपलब्ध विविध साहित्य ___ कालांतर में जैन आचार्यों तथा विद्वानों ने दर्शन, न्याय, साहित्य, कथा, छंद, अलंकार, व्याकरण, ज्योतिष, सिद्धांत, गणित, भूगोल, आयुर्वेद तथा और भी अन्यान्य विषयों पर विपुल साहित्य रचना करके उन-उन विषयों के साहित्य को खूब समृद्ध किया। जैनाचार्यों की गणित, ज्ञान-विज्ञान तथा चिकित्सा संबंधी कई खोजें भारतीय मनीषा को चमत्कृत कर देने वाली हैं। इतने विशाल साहित्य भंडार में से बहुत कुछ साहित्य प्रकाशित होकर सामने आ चुका है किंतु बहुत सारा आज भी अपने संपादन तथा प्रकाशन की प्रतीक्षा में हस्तलिखित रूप में देश के अनेक शास्त्र-भंडारों में भरा पड़ा है। महत्वपूर्ण सभी ग्रंथों की विशाल सूची इस लघु परिचयात्मक पुस्तिका में देना संभव नहीं है। फिर भी कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथों के नाम प्रस्तुत हैं। जैन धर्म तथा दर्शन को पढ़ने तथा उसके हार्द को समझने की दृष्टि से अकसर लोग कुछ प्रमुख ग्रंथों तथा किताबों के नाम माँगते हैं। मैं यहाँ मात्र कुछ ही प्रमुख व सरल ग्रंथों का नाम दे रहा हूँ जिन्हें पूरी तरह पढ़ने पर जैन धर्म-दर्शन की मूल व सामान्य जानकारी सभी वर्ग के व्यक्तियों को हो सकती है। इन ग्रंथों को पूरा पढ़ने के बाद पाठक का प्रवेश जैन दर्शन में हो जाएगा तथा वह आगे और अधिक बड़े ग्रंथ पढ़ने की योग्यता को स्वतः निर्मित कर पाएगा। प्रमुख आरंभिक मूल शास्त्र (1) तत्वार्थसूत्र- आचार्य उमास्वामिकृत (प्रथम शती), संपादक- पं० फूलचंद्र सिद्धांतशास्त्री, प्रकाशक- श्री गणेश वर्णी दि० जैन संस्थान, नरिया, वाराणसी। यह ग्रंथ और भी अनेक संस्थानों से श्रेष्ठ विद्वानों के संपादन सहित प्रकाशित है। ___ (2) रत्नकरंडश्रावकाचार- समंतभद्राचार्य कृत (तृतीय शती), प्रकाशकवीरसेवा मंदिर, दरियागंज, नई दिल्ली (3) द्रव्यसंग्रह- नेमिचंद्र सिद्धांतिदेव मुनि कृत, प्रकाशक- परमश्रुत प्रभावक मंडल प्रकाशन, अगास (गुज०) | जैन धर्म-एक झलक ।
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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