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बाद में स्वयं ही जैन धर्म में दीक्षित होकर कठोर साधना की और जैन धर्म-दर्शन विषयक अनेक ग्रंथों का प्रणयन भी किया। आज भी कई जैन मुनि जाति से ब्राह्मण हैं। जैन धर्म सभी ने अपनाया और उसका पालन किया। जैन धर्म के नियम बहुत वैज्ञानिक हैं किंतु बहुत ज़्यादा आसान नहीं हैं तथापि जन्म से जैन कहे जाने वाले लोगों को भी ये नियम मानने के लिए मजबूर नहीं किया जाता; हाँ! अभ्यास हेतु प्रेरणा अवश्य दी जाती है और इसका परिणाम यह है कि अधिकांश लोग उसका पालन कर रहे हैं।
जैन बनने का अर्थ धर्म परिवर्तन नहीं है। हम जहाँ हैं जैसे भी हैं उसी स्थान पर रहकर जैन जीवन-शैली अपनाकर और सिद्धांतों का अध्ययन कर जैन बन सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी नहीं कि नाम के आगे भी 'जैन' लगाया ही जाए। शुद्ध जीवनशैली और अपनी शांत चित्त आत्मा की अनुभूति किसे पसंद नहीं? जैन धर्म बस इसका रास्ता बताता है। जो यह चाहे वह जैन हो जाए। कभी-कभी जन्म से जैन कहे जाने वाले लोग भी दुर्भाग्य से जैन धर्म का पालन नहीं कर पाते हैं तब उन्हें भी मात्र जन्मना जैन माना जाता है, कर्मणा नहीं।
यह छोटी-सी पुस्तक जैन धर्म की वास्तविकताओं तथा उसके सिद्धांतों को समझाने का प्रयास है या यूँ कहें कि एक छोटी-सी शुरूआत। प्रख्यात दिगंबर जैन संत आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज इस पुस्तक के मुख्य प्रेरणास्रोत हैं।
आचार्यश्री ने अपनी प्रेरणा देकर जिनवाणी की बहुत सेवा की है। कई दुर्लभ ग्रंथों को प्रकाशित किया है। कठिन मनिचर्या का निर्वाह करते हए भी वे जीवों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उनके मन की कल्पना को मैं इस छोटी-सी पुस्तक के माध्यम से कितना आकार दे पाया हूँ, यह तो मैं नहीं जानता किंतु इतना अवश्य जानता हूँ कि उनकी वाणी में इतना सम्मोहन है कि लोग बँध ही जाते हैं और उनके दर्शन मात्र करने से इतनी ऊर्जा आ जाती है कि व्यक्ति हर असंभव कार्य भी संभव बना सकता है। आचार्यश्री की दृष्टि बहुत पारखी है। पत्र-पत्रिकाओं में मेरे आलेखों को पढ़कर उन्होंने मुझे आदेश दिया था कि जैन धर्म का सरल परिचय देने वाली एक छोटी-सी पुस्तक लिखो। उनकी आज्ञा पाते ही मैंने शुरूआत कर दी। मन में तरह-तरह के विचार बनते रहे कि जैनदर्शन के विशाल भंडार से क्या लूँ तथा क्या न लूँ? छोटी पुस्तक में सभी बातें समेट पाना भी संभव नहीं है। अतः मैंने कुछ चुनिंदा विषयों को ही यहाँ पर संक्षेप में समझाने का प्रयास किया है। मैंने देखा है कि कई बार धर्म-दर्शन के विद्वान भी जैन धर्म के विषय में गलत भ्रांतियाँ पाले रहते हैं। मैंने यहाँ इस बात का भी ध्यान रखा है कि वे भ्रांतियाँ मिट सकें।