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-वर्ती पदार्थ किसी के प्रत्यक्ष हैं। - इसप्रकार सर्वज्ञ की सत्ता भलीभाँति सिद्ध हो गई।"
इन्द्रिय-ज्ञान द्वारा ज्ञात नहीं होनेवाले परमाणु आदि सूक्ष्म कहलाते हैं; काल से दूरवर्ती अर्थात् भूत-भावीकालीन राम-रावण - महापद्म आदि अन्तरित हैं तथा क्षेत्र से दूरवर्ती / सुदूर क्षेत्र में स्थित मेरु पर्वत आदि दूरवर्ती पदार्थ हैं।
वस्त्र आदि दिखाई देनेवाले स्थूल-स्कन्धों के माध्यम से हम सूक्ष्मरूप परमाणु का अनुमान-ज्ञान कर लेते हैं; परन्तु कोई सूक्ष्म-द्रष्टा उन्हें प्रत्यक्ष देख लेता है। हमारे पिता, पिता के पिता, उनके भी पिता और उनके भी पिता इत्यादि रूप में हम दीर्घकालीन अपने पूर्वजों आदि का अनुमान ज्ञान कर लेते हैं; परन्तु उनके समयवर्ती व्यक्ति उन्हें प्रत्यक्ष देखते हैं।
इसी प्रकार अपने समीपस्थ पर्वत, नदी आदि को देखकर हम अन्यत्र स्थित पर्वत, नदी आदि का भी अनुमान - ज्ञान कर लेते हैं; परन्तु वहाँ रहनेवाले व्यक्ति उन्हें प्रत्यक्ष देख रहे हैं अर्थात् जिन्हें कोई अनुमान से जानता है, उन्हें कोई न कोई प्रत्यक्ष से अवश्य जानता ही है । तीनकालतीनलोकवर्ती स्व-पर सभी पदार्थों को यतः हम अनुमान से जान लेते हैं; अतः कोई न कोई उन्हें नियम से प्रत्यक्ष जानता ही है। उन्हें प्रत्यक्ष जानने वाला विशद ज्ञान ही सर्वज्ञ है।
३. प्रमाण- प्रमेय या ज्ञान - ज्ञेय पद परस्पर संबंध-वाचक हैं। यत: तीनकाल - तीन लोकवर्ती समस्त पदार्थ युगपत् प्रमेयत्वशक्ति- सम्पन्न हैं; अतः उन्हें जाननेवाला ज्ञान भी ऐसी शक्ति सम्पन्न अवश्यमेव होना चाहिए। ज्ञान की इसी सामर्थ्य का नाम सर्वज्ञता है।
४. आगम में सूक्ष्मादि पदार्थों का वर्णन उपलब्ध है। बिना जाने वर्णन / निरूपण करना असम्भव होने से आगम के वक्ता/ आप्त उनके ज्ञाता होने ही चाहिए। उनके प्रत्यक्ष ज्ञाता सर्वज्ञ हैं ।
इत्यादि अनेकानेक तर्कों से यह सिद्ध है कि 'तीनकाल- तीनलोकवर्ती सभी पदार्थों को युगपत् जाननेवाला अर्थात् सर्वज्ञ विश्व में है । इसप्रकार सामान्यरूप में सर्वज्ञ की सिद्धि हुई ।
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / २२४.