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दुरूहता है और न ही अष्टसहस्री की विशालता तथा गंभीरता; कारिकाओं का व्याख्यान भी लम्बा नहीं है और न ही दार्शनिक विस्तृत ऊहापोह है। इसमें मात्र कारिकाओं के पद-वाक्यों का शब्दार्थ और कहीं-कहीं फलितार्थ अतिसंक्षेप में प्रस्तुत किया गया है।
इनके अतिरिक्त प्रस्तुत कृति आप्तमीमांसा पर अन्य कोई टीकाएं दृष्टिगोचर नहीं हुई हैं। प्रश्न ३: प्रत्येक कारिका का सामान्य अर्थ लिखिए। उत्तर : प्रत्येक कारिका का सामान्य अर्थ क्रमश: इसप्रकार है -
सर्वप्रथम इस पहली कारिका द्वारा बाह्य विभूति के कारण जिनेन्द्र भगवान महिमावान नहीं हैं; यह बताते हैं - . __ (सभी कारिकाएँ अनुष्टुप् छन्द में हैं तथा प्रत्येक का हिन्दी पद्यानुवाद वीर-छन्द में है।)
देवागम-नभोयान, चामरादि - विभूतयः। मायाविष्वपि दृष्यन्ते, नातस्त्वमसि नो महान् ॥१॥ देव आगमन विहार नभ में, चामर आदि विभूति भी।
मायावी में देखी जातीं, इससे आप महान नहीं॥१॥ शब्दश: अर्थ:देव-आगम-देवों का आना, नभोयान आकाश में विहार, चामर-आदि विभूतयः चामर/चँवर आदि विभूतिआँ, मायाविषु = मायाविओं में, अपि=भी, दृष्यन्ते दिखाई देती हैं, न-नहीं, अत: इसलिए, त्वं-तुम/भगवान आप!, असि-हो, न: हमारे लिए, महान् बड़े। सरलार्थ : हे भगवन ! (आपके दर्शनादि के लिए) देवगण आते हैं, (आपका) आकाश में विहार होता है, (आप) चँवर आदि विभूतिओं/ अष्ट प्रातिहार्यों से सहित हैं; इसकारण मेरे लिए महान नहीं हैं; क्योंकि ये सब विशेषताएँ तो मायाविओं में भी दिखाई देती हैं ॥१॥ ___ अब अंतरंग-बहिरंग शारीरिक विशेषताओं के कारण भी आप महिमावान नहीं हैं; यह बताते हैं -
अध्यात्म बहिरप्येष, विग्रहादिमहोदयः। दिव्यः सत्यो दिवौकष्वप्यस्ति रागादिमत्सु सः॥२॥
- देवागम स्तोत्र (आप्तमीमांसा)/२१३ -