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आपने काशी नरेश के समक्ष अपना परिचय देते हुए अपनी दश विशेषताओं का परिचय दिया है। वे इसप्रकार हैं – “हे राजन! मैं आचार्य हूँ, कवि हूँ, वादिराट् (शास्त्रार्थिओं में श्रेष्ठ हूँ), पण्डित (दूसरों की रचनाओं को स्वयं समझने और दूसरों को समझाने में कुशल) हूँ, दैवज्ञ (ज्योतिषी) हूँ, वैद्य हूँ, मंत्र-विशेषज्ञ हूँ, तंत्र-विशेषज्ञ हूँ, इस सम्पूर्ण समुद्र-वलया भूमि पर आज्ञासिद्ध हूँ, अधिक क्या कहूँ? मैं सिद्धसारस्वत हूँ।" ___ आप अपने समय के एक महान धर्म-प्रचारक रहे हैं। आपने जैनसिद्धान्तों और जैनाचरणों को दूर-दूर तक विस्तार के साथ फैलाने का प्रयास किया है। आपका अन्य सम्प्रदायवालों ने भी कभी विरोध नहीं किया।
आपके अविरोध प्रवर्तन का प्रधान कारण आपके अंत:करण की शुद्धता, चारित्र की निर्मलता और वाक्पटुता है। पक्षपात से रहित, स्याद्वाद से संयुक्त होना, आपकी वाणी की मुख्य विशेषता है। आपको पक्षाग्रह, दुराग्रह रंचमात्र स्वीकार नहीं है। आप स्वयं तो परीक्षा-प्रधानी हैं ही; अन्य को भी निष्पक्षदृष्टि से स्व-पर सिद्धान्तों के ऊपर गंभीरता से विचारकर परीक्षा-प्रधानी बनने की प्रेरणा देते हैं।
इसप्रकार आपके पवित्र, बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न जीवन का तथा साहित्य-सृजन का जैनधर्म के प्रचार-प्रसार में महान योगदान रहा है। प्रश्न २ : विषयवस्तु सहित देवागम स्तोत्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए। उत्तर : स्तोत्र शैली में रची गई आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी की प्रस्तुत कृति का एक नाम आप्तमीमांसा भी है। प्रारम्भिक शब्दों के आधार पर नामकरणवाले अन्य स्तोत्रों (भक्तामर स्तोत्र, कल्याणमंदिर स्तोत्र आदि) के समान देवागम' शब्द से प्रारम्भ होने के कारण प्रस्तुत कृति भी 'देवागम स्तोत्र' नाम से प्रसिद्ध हो गई है। दार्शनिक एवं कारिकात्मक सूत्र शैली में रचित ११४ अनुष्टुप् छंदोंवाली प्रस्तुत कृति दश परिच्छेदों में विभक्त है। उनकी विषयवस्तु इसप्रकार है१. प्रथम परिच्छेद : प्रारम्भिक २३ कारिकाओं वाले इस परिच्छेद की प्रारम्भिक ६ कारिकाओं द्वारा देव-आगमन आदि बाह्य विशेषताओं से
-- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/२०८ -