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________________ (दीपावली पर्व) के दिन ब्रम्हमुहूर्त में आपने द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म से रहित हो निर्वाण पद प्राप्त कर लिया। इंद्रादि ने आकर निर्वाण कल्याणक का उत्सव किया। उसी दिन सायंकाल उनके प्रमुख शिष्य इंद्रभूति गौतम को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। ___ ज्ञानी जनों द्वारा उनका शासन अभी भी सुरक्षित चला आ रहा है। हम भी उनसे आत्मा से परमात्मा बनने की कला सीखकर परमात्मा बनें यही उनके जीवन की सदप्रेरणा है।। प्रश्न २ : बालक वर्धमान के गर्भ में आने से पूर्व उनकी माँ ने कितने और कौन-कौन से स्वप्न देखे थे ? फल सहित स्पष्ट कीजिए। उत्तर : प्रत्येक तीर्थंकर की माँ बालक के गर्भ में आने से पूर्व अपूर्व अद्भुत १६ स्वप्न देखती हैं; तदनुसार बालक वर्धमान के गर्भ में आने से पूर्व उनकी माँ प्रियकारिणी त्रिशला ने भी सोलह स्वप्न देखे थे। जो क्रमश: इसप्रकार हैं १. मदोन्मत्त गज, २. ऊँचे कंधों वाला शुभ्र बैल, ३. गरजता सिंह, ४. कमल के सिंहासन पर बैठी लक्ष्मी, ५. दो सुगंधित मालाएं, ६. नक्षत्रों की सभा में बैठा चंद्र, ७. उगता हुआ सूर्य, ८. कमल के पत्तों से ढंके दो स्वर्ण कलश, ९. जलाशय में क्रीड़ारत मीन-युगल, १०. स्वच्छ जल से परिपूर्ण जलाशय, ११. गंभीर घोष करता सागर, १२.मणि जड़ित सिंहासन, १३. रत्नों से प्रकाशित देव विमान, १४. धरणेंद्र का गगनचुम्बी विशाल भवन, १५. रत्नों की राशि और १६. निधूम अग्नि। प्रात:कालीन क्रियाओं से निवृत्त हो जब होनेवाले तीर्थंकर की माँ, होने वाले तीर्थंकर के पिता सिद्धार्थ के पास इनका फल जानने के लिए जाती हैं; तब निमित्त-शास्त्र के ज्ञाता उन्होंने इनका फल क्रमश: इसप्रकार बताया - तुम्हारा पुत्र १. गज-सा बलिष्ठ, २. वृषभ-सा कर्मठ, ३. सिंह-सा प्रतापी, ४. अनन्त चतुष्टय लक्ष्मी का धारी, ५. सुमनों-सा कोमल, ६. चंद्र-सा शीतल, ७. सूर्य-सा अज्ञानांधकार नाशक, ८. स्वर्ण कलशसा मंगलमय, ९. जलाशय में क्रीड़ारत मीनयुगल के समान ज्ञानानन्द - तीर्थंकर भगवान महावीर/१९३ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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