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मनाने के लिए अभिषेक करने हेतु इंद्रादि उन्हें ऐरावत हाथी पर बिठाकर सुमेरु पर्वत पर ले गए।
कंचनवर्णी सर्वांगसुन्दर कायावाले बालक वर्धमान जन्म से ही आत्मज्ञानी, विचारवान, विवेकी, निडर, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी सत्पुरुष थे।
प्रत्युत्पन्नमति, विपत्तिओं में भी संतुलित चित्त वाले बालक वर्धमान की वीरता, धीरता, निर्भीकता की परीक्षा लेने का भाव एक बार संगम नामक देव को आ गया। बालक वर्धमान अन्य बाल-मित्रों के साथ एक बार क्रीड़ा वन में खेलते हुए जब एक वृक्ष पर चढ़ गए थे; तब वह देव भयंकर कुपित, फुफकारते हुए काले नागराज का रूप बनाकर वृक्ष से लिपट गया। अन्य सभी बालक तो भय से काँपने लगे; परन्तु वर्धमान को निश्शंक, निर्भयरूप में अपनी ओर आता देख असली रूप में आ, उन्हें 'वीर' कहकर वह चला गया। __ एकबार एक मदोन्मत्त हाथी कुपित हो गजशाला का बंधन तोड़कर नगर में यहाँ-वहाँ विध्वंस करने लगा। राजकुमार वर्धमान ने अपनी शक्ति
और युक्ति से क्षणभर में उसे निर्मद कर दिया। यह देख सभी उन्हें अतिवीर' कहने लगे।
संजय और विजय नामक दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराजों की शंका का समाधान वर्धमान को देखने मात्र से हो जाने के कारण उन्होंने उन्हें 'सन्मति' नाम से सम्बोधित किया।
यौवनावस्था में प्रविष्ट होते ही दुनिया ने उन्हें अपने रंग में रंगना चाहा; परन्तु आत्मा के रंग में सर्वांग सरावोर वर्धमान पर उसका रंग न चढ़ सका। अनेक-अनेक प्रकार से समझाने पर भी, विविध प्रलोभन बताने के बाद भी वे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुए तथा अबंध-स्वभावी आत्मा का आश्रय ले मोह-बंधन को तोड़कर, तीस वर्षीय भरे यौवन में मंगसिर कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा लेने वन को चल दिए। __ इस प्रसंग पर उनके वैराग्य की अनुमोदना करने के लिए स्वर्ग से लौकांतिक देव भी आए। तत्पश्चात् इंद्रादि ने आकर तप कल्याणक का
- तीर्थंकर भगवान महावीर/१९१