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________________ इत्यादि अनेक प्रकार से इन दोनों में पारस्परिक अंतर है। . प्रश्न ७५ : अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए। उत्तर : ये दोनों ही करण के भेद होने पर भी इनमें कुछ पारस्परिक अंतर भी है। जो इसप्रकार है अपूर्वकरण ___ अनिवृत्तिकरण १. गुणस्थान-क्रम में यह आठवाँ | गुणस्थान-क्रम में यह नवमाँ गुणगुणस्थान है। | स्थान है। २. इसमें संज्वलन और नो कषाय | इसमें उनका मंदतम उदय है। का मंदतर उदय है। ३. यहाँ से गमन दोनों श्रेणिओं की | यहाँ से गमन दोनों श्रेणिओं की अपेक्षा नवमें, उपशमक की अपेक्षा अपेक्षा दशवें, उपशमक की अपेक्षा सातवें और मरण की अपेक्षा चौथे | आठवें और मरण की अपेक्षा चौथे में होता है। में होता है। ४. यहाँ आगमन उपशमक की | यहाँ आगमन उपशमक की अपेक्षा अपेक्षा नवमें से और दोनों की | दशवें से और दोनों की अपेक्षा अपेक्षा सातवें से होता है। आठवें से होता है। ५. यथायोग्य अंतर्मुहूर्त होने पर भी | यथायोग्य अंतर्मुहूर्त होने पर भी इसका काल अनिवृत्तिकरण की | इसका काल अपूर्वकरण की अपेक्षा अपेक्षा कुछ अधिक है। कुछ कम है। ६. इसमें समान समयवर्ती जीवों इसमें समान समयवर्ती जीवों के के परिणाम समान-असमान – परिणाम पूर्णतया सुनिश्चित समान दोनों प्रकार के होते हैं। होते हैं। ७. इसमें रहनेवाली विकृति से निद्रा | इसमें रहनेवाली विकृति से पुरुषआदि ३६ का बंध होता है। वेद आदि ५ का बंध होता है। ८. इसमें बादर कृष्टि-सूक्ष्म कृष्टि | इसमें बादर कृष्टि-सूक्ष्म कृष्टि होती नहीं होती है। ९. इसके प्रथम भाग में मरण नहीं इसके सभी भागों में मरण हो सकता होता है। - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/१८४
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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