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अनुष्टुप् : महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्त्या भागेन्दुना कृतम् । यः पठेच्छुणुयाच्चापि स याति परमां गतिम् ।। वीरछन्द : जिन भक्तिवश भागेंदु कृत स्तोत्र महावीराष्टक को । नित भाव पूर्वक पढ़े सुने जो पाता परम गति सुख को ।। शब्दश: अर्थ : महावीराष्टकं = 'महावीराष्टक' नामवाला, स्तोत्रं = स्तोत्र, भक्त्या=भक्ति के वशीभूत हो, भागेन्दुना = भागचन्द (कवि) द्वारा, कृतं = किया गया, यः=जो, पठेत्= पढ़े / पढ़ता है, श्रुणुयात् = सुने/सुनता है, च= और, अपि=भी, स:= वह, याति = प्राप्त करता है, परमां गतिं = उत्कृष्ट गति को
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सरलार्थ : यह महावीराष्टक स्तोत्र ( भगवान के प्रति ) भक्ति के वशीभूत हो, भागचन्द कवि द्वारा किया गया है। जो इसे पढ़ता है या सुनता है, वह परमगति को प्राप्त करता है ।
महावीर - स्तोत्र
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जननजलधिसेतुर्दुःखविध्वंशहेतुः निहतमकरकेतुर्वारितानिष्टहेतुः । समरसभरहेतुर्नष्टनिःशेषधातुः, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥ १ ॥ शमदमयमकर्तासारसंसारहर्ता, सकलभुवनभर्ता भूरिकल्याणकर्ता । परमसुखसमर्ता सर्वसन्देहहर्ता, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥२॥ कुगतिपथविनेता मोक्षमार्गस्य नेता, प्रकृतिगहनहन्ता सत्त्वसंतापशन्ता । गगनगनगन्ता मुक्तिरामाभिमन्ता, जगति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥३॥ सजलजलदनादो निर्जिताशेषवादो, नरपतिनुतपादो वस्तुतत्त्वज्ञगादः । जितभविभववृन्दो नष्ट कोपारिकन्दो, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥४॥ प्रबलबलविशालोमुक्तिकान्तारसालो, विमलगुणमरालोनित्यकल्लोलमालः । विगतशरणशालो धारितस्वच्छभालो, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥५॥ मदनमदविदारी चारुचारित्रधारी, नरकगतिनिवारी स्वर्गमोक्षावतारी । विदितभुवनसारी केवलज्ञानधारी, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥ ६ ॥ विषयविषविनाशो भूरिभाषानिवासो, गतभवभयपाशो दीप्तिवल्ली विकाशः । करणसुख निवासो वर्णसम्पूरिताशो, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥७॥ वचनरचनधीरः पापधूली-समीरः कनकनिकरगौर : क्रूरकर्मारिशूरः । कलषुदहननीर: पातितानंगवीरः, जयति जगति चन्द्रो वर्धमानो जिनेन्द्रः ॥८॥
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महावीराष्टक स्तोत्र / ११