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________________ प्रकृतिओं में देशघाति और सर्वघाति - दोनों ही प्रकार के स्पर्धक होने से इनमें क्षयोपशम दशा हो सकती है। सर्वघाति प्रकृतिओं में मात्र सर्वघाति स्पर्धक होने से उनमें क्षयोपशम दशा नहीं हो सकती है। मोहनीय कर्म की सम्यक्त्व प्रकृति, संज्वलन क्रोधादि चतुष्क और नौ नो कषायें-ये चौदह प्रकृतिआँ ही देशघाति हैं; शेष चौदह सर्वघाति हैं। छठवें आदि साम्परायिक गुणस्थानों में संज्वलन चतुष्क और नौ नो कषाय कर्मरूप देशघाति प्रकृतिओं का क्षयोपशम होने से वहाँ विद्यमान चारित्र क्षायोपशमिक चारित्र कहलाता है। पाँचवें गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्मरूप सर्वघाति प्रकृतिओं का उदय है; वास्तव में तो इनका क्षयोपशम होता ही नहीं है; परन्तु इनका उदय संयमासंयमरूप देशविरत दशा का घात करने में समर्थ नहीं है; इनके उदय में भी यह व्यक्त रहता है; अत: इन्हें उपचार से क्षयोपशमरूप मानकर तत्संबंधी भावों को क्षायोपशमिक भाव में गिन लिया है। यह क्षायोपशमिक चारित्र के समान नहीं है; अत: इसे उससे पृथक् कर संयमासंयम नाम दिया है। __ इसप्रकार इन दोनों में स्वरूपगत अंतर होने से इन्हें पृथक्-पृथक् गिना गया है। प्रश्न ३५ : देशविरत नामक इस पाँचवें गुणस्थान के भेद बताइए। उत्तर : इसके मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी-अप्रत्याख्यानावरण-रूप दो चौकड़ी कषाय के अभावरूप वीतरागता तथा शेष रहीं कषायों के सद्भावरूप सरागतामय सामान्य शुद्धाशुद्ध दशा की अपेक्षा तो कोई भेद नहीं हैं; तथापि शेष रहीं कषायों के उत्तरोत्तर मंद-मंद उदय की अपेक्षा, फल-दान शक्ति की हीनता की अपेक्षा इसके असंख्यात लोकप्रमाण भेद बन जाते हैं। जिन्हें मध्यम शैली में बारह व्रतों की मुख्यता से ग्यारह प्रतिमाओं के रूप में विभक्त किया जाता है। जिनके नाम क्रमश: इसप्रकार हैं -१.दर्शन, २. व्रत, ३.सामायिक, ४.प्रोषधोपवास, ५. सचित्तविरत,६. दिवा मैथुन त्याग या रात्रि भुक्ति त्याग, ७. ब्रम्हचर्य, ८. आरम्भ त्याग, ९. परिग्रह त्याग, १०.अनुमति त्याग और ११. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा। क्षुल्लक, ऐलक, क्षुल्लिका, आर्यिका-ये सभी इन ग्यारह प्रतिमाओं के पूर्णतया धारक होने से उत्कृष्ट देशव्रती श्रावक ही हैं। - चतुर्दश गुणस्थान/१४१ - -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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